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________________ प्राचीन अर्धमागधी की खोज में / के आर चन्द्र इन विशेषताओं के लिए जो भी उदाहरण दिये गये हैं उनसे यही स्पष्ट होता है कि अर्धमागधी एक प्राचीन प्राकृत भाषा थी । उदाहरणों के रूप में : 1. शब्द के प्रारंभिक य का अ । = सूत्र है - आदेर्यो ज : ( 8.1.245 य ज ) परंतु आर्षे लोपोऽपि । उदाहरण :- अहक्खायं, अहाजायं । अशोक के शिलालेखों में भी ऐसी ही प्रवृत्ति मिलती है । आदि य का ज बहुत बाद की प्रवृत्ति है (मेहेण्डले,7 पृ. 274) । अर्धमागधी में यथा और यावत् अव्ययों में यह प्रवृत्ति मिलती है । तु ७२ 2. आर्षे दुगुल्लं (दुकूल) का उदाहरण सूत्र 8.1 119 में दिया गया है । यहाँ पर क के लोप के बदले में ग मिल रहा है। हालाँकि उदाहरण स्वरपरिवर्तन और व्यंजन के द्वित्व का ( दुअल्लं, दुऊलं ) है । लेकिन अर्धमागधी के उदाहरण में लोप के बदले क का घोष ग मिलता है । घोष की प्रवृत्ति लोप से प्राचीन है । अशोक के पूर्वी प्रदेश के शिलालेखों में जौगड के पृथक् शिलालेख में एक बार 'लोक' का 'लोग' ( 27 ) मिलता है । खारवेल के शिलालेख में भी एक बार 'क' का ग ( उपासक -उबासग ) मिलता है । 3. इस के साथ साथ सूत्र नं. 8.1.177 में मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों के प्रायः लेाप का जो नियम दिया है, उनकी वृत्ति में भी क का ग होना दर्शाया गया है; उदाहरण – एगतं, एगो, अमुगो, सावगो, आगारो, तित्थगरो । आगे कहा है आर्ष में ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे । यह सब घोषीकरण की प्राचीन प्रवृत्ति है और बाद 7. Historical Grammar of Inscriptional Prakrits, M.A. Mehendale, Poona, 1948 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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