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________________ अध अर्धमागधी आगम-ग्रन्थों की प्राचीनता और उनकी रचना का स्थल अशोक के शिलालेखों से उदाहरणशक्य = सकिय (जौगड), सक (गिरनार), सक्य (ब्रह्मगिरि, सिद्दापुर ) । इभ्य = इभिय (धौली, जौगड ), इभ्य ( मानसेहरा ), इभ ( शाहबाजगढी, __ कालसी) । व्यञ्जन = वियंजन (धौली, जोगड, कालसी), व्यंजन ( गिरनार )। उ. अर्धमागधी भाषा में शब्द के ( विभक्ति युक्त) अन्तिम - अः - -ए के प्रयोग __ अर्धमागधी भाषा में अकारान्त पुं. प्र. ए. व. के लिए -ए विभक्ति सामान्यतः पायी जाती है जो मूलतः मागधी का लक्षण है । परंतु इस विभक्ति के सिवाय अन्य रूपों में जिनका अन्त अ: मे' होता है उनमे भी-अ: के स्थान पर – ए का पाया जाना क्षेत्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । उदाहरणार्थ :(अ) पुरस् = पुरे' ( जस्स णत्थि पुरे पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया आचा. 1.4.4.145; पुरे संखडिं वा पच्छा संखडि वा-आचा. 2.1.2.338); पुरेकड, पुरेकम्म, पुरेक्खड, पुरेक्खार, पुरेसंथय इत्यादि के लिए देखिए पिशा-345 या) अधस = अधे, अहे (उड्ढं अधे य तिरियं च पेहमाणे-आचा. 1.9.4.320; अधे दिसातो वा आगतो-आचा. 1 1.1.1; काय अहे वि दसैति - सूत्रकृ. 1.4 1.3) (इ) हेट्ठा शब्द की व्युत्पत्ति भी अधे शब्द से ही समझायी जाती है । अधेस्तात् = ( * अधेष्टात् ) = धस्तात् =. हस्तात् ; 1. स स्कृत भाषा में पुरस् के लिए समास के प्रथम शब्द के रूप में इस प्रकार के प्रयोग मिलते हैं-पुर, पुरः, पुरस् , पुर, पुग, पुगे। इनमें पुरे का प्रयोग नहीं मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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