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________________ प्राचीन अर्धमागधी की खोज में / के. आर. चन्द्र मानसेहरा में 'समन्त' शब्द मिलता है । गिरनार में इस के स्थान पर 'सामीपं ' शब्द मिलता है । इससे और भी स्पष्ट हो जाता है कि अर्थ और जोड़नी की दृष्टि से 'सामन्त' शब्द का प्रयोग जिस प्रदेश में था उसी प्रदेश से यह शब्द अर्धमागधी आगमों में आया है । अर्थात् आगमों की रचना पूर्वी प्रदेश में हुई है इसमें कोई संदेह नहीं है । पालि' साहित्य में भी 'सामन्त' शब्द का अर्थ पडोसी या पडौस में होता है । ट. ६२ यकार युक्त संयुक्त व्यंजनों में स्वरभक्ति प्राकृत भाषा में संयुक्त व्यंजनों में प्राय: समीकरण होता है । परंतु अर्धमागधी भाषा में संयुक्त व्यंजनों में जहाँ पर द्वितीय व्यंजन जय हो उनमें समीकरण के बदले में स्वरभक्ति के उदाहरण अधिक मिलते हैं, जैसे अणितिय (अनित्य) आचा. 1 1.5.45 तहिय ( तथ्य ) उत्तरा 28.14 कारिय (कार्य) इसिभासियाई 11.3 वेयावडिय (वैय्यावृत्य) व्यवहार सूत्र आचा. 1.5.4.163 पालि भाषा के सुत्तनिपात में भी ऐसे उदाहरण मिलते हैंतथिय ( तथ्य ) 50.5,6, मच्छरिय ( मात्सर्य ) 49.2 समीकरण के बदले सामान्यीकरण करने की संयुक्त व्यंजनों की यह पद्धति आल्सडर्फ महोदय के अनुसार अशोक के शिलालेखों में पूर्व भारत में पायी जाती है जबकि उत्तर - पच्छिम और पच्छिम में उनका या तो समीकरण होता है या वैसे के वैसे रहते हैं । 2 1. देखिए पालि इंग्लिश डिक्शनरी जिसमें दीघनिकाय और विनयपिटक से प्रयोग उद्धत किये गये हैं । € 2 L Alsdorf Kleine Schriften, pp. 451-2; : और देखिर - मेहेण्डले नं. 41, पृ. 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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