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________________ अर्धमागधी आगम -ग्रन्थों की प्राचीनता और उनकी रचना का स्थल (2) अर्धमागधी भाषा में भारत के पूर्वी क्षेत्र (अशोक कालीन भाषा) के लक्षण छ. र = ल अर्धमागधी भाषा के आगम ग्रन्थों में रकार के स्थान पर लकार के कितने ही प्रयोग मिलते हैं – आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध से उदाहरण : -- लाढ (294, 295, 298, 300, , लुक्ख (176),. लूह (99,161,198,295,30.), एलिंस (177), अणेलिस (229),. एलिक्ख (297), पलिछिंदिय (145), पलिछिदियाणं (115), पलिछिण्ण. (144), पलिओछण्ण (151), पलिमोक्ख (151), उराल ( उदार - 263), इत्यादि । इसिभासियाई - अन्तलिक्ख 10. पृ. 23.5, पलिछण्णो 45.45; व्यवहारसूत्र - अपलिछण्ण; बृहत्कल्पसूत्र – पलिछन्न; निशीथसूत्र - पलिमद्द, इत्यादि । पिशल महादयने (257) अपने प्राकृत व्याकरण में ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं - अंतलिक्ख (आचा., उत्तरा., दशबै इत्यादि), परियाल (परिवार),. पलियन्त (पर्यन्त), रुइल (रुचिर), इत्यादि । इस विषय में उनका कहना है कि अन्य प्राकृतों से अर्धमागधी में र = ल के प्रयोग अधिक मात्रा में और बहुधा मिलते हैं। इस दृष्टि से यह भाषा मागधी के निकट पहुँचती है और महाराष्ट्री से दूर हो जाती है (257) । अशोक के शिलालेखों में तो पूर्वीक्षेत्र में रकार का प्रायः लकार ही पाया जाता है अतः यह लक्षण स्पष्ट रूप से पूर्वी क्षेत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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