SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ v प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/ के. आर. चन्द्र (झ) चतुर्थी एकवचन के - आय विभक्ति वाले कुछ रूप (i) इसिभा. - वाहिक्खयाय, मोहक्खयाय, 387, झाणाय, 38.15, कम्मादाणाय, 38.16, मोहक्खायाय, 24.38 (ii) सूत्रकृतांग - आतहिताय ( म, जै. वि) 1.4 1.16, अण्णपायाय (अन्नपाकाय) म. जै, वि. पृ. 50 पर उद्धृत चूर्णी का पाठान्तर ( सामान्यतः इसके स्थान पर आए विभक्ति के प्रयोग ही अधिकतर मिलते हैं । ) (ट) क्रियाविशेषण के रूप में पंचमी एकवचन के प्राचीन प्रयोग पदिसो :- तसंति पाणा पदिसो दिसासु य ( आचा. 1.1.6.49 ), पिशल महोदय (413) के अनुसार अन्य प्रयोगः- दिसो दिसं ( आचा. (216.6), दिसा दिसिं ( प्रश्नव्याकरण, उत्तराध्ययन, नायाधम्मक हाओ) पओगसो (इसिभा 24.37). इनमें बहुसा ( आचा. 1.9.4.17), सन्वसो (आचा. 1.9.1.12,16,18) इत्यादि भी जोड़े जा सकते हैं । पालि सुत्तनिपात में भी ऐसे प्रयोग मिलते हैं : पुथुसो 50.14, 15 सब्बसो 53.6,16. (ठ) षष्ठी एकवचन के रूप (1) वर्तमान कृदन्तः--- ( पाठान्तर, करओ (कुर्वतः ) आचा. 1.1.1.4 अवियाणओ, अविजानतो = अविजानतः, आचा. 1.1.6.49 (और देखो सूत्र नं. 144, 148,149,154 ) । पिशल महोदय ( 396 ) द्वारा दिये गये अन्य रूपःविहरओ, अकुव्वओ, हणओ, कित्तयओ । इसिभा. 16. पृ. 33.20 से विप्पवतो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy