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१४
(स) इत्थीपरिन्ना (सूत्रकृ. 1.4) से कुछ और उदाहरण
सूत्र नं. | संस्कृत |
1.4.1 25
रुक्षम्
गृहाणि
1.4.1 2
सूक्ष्मेण
1.4.1.24
वाचा
14.1.16 आत्महिताय
1.4.1.15 भवन्ति
1.4.1.9
मुच्यते
1.4 1.31
इच्छेत्
1.4.1 12 विहरेत्
(३) सूत्रकृतांग ( 1.6)
1.4.1.17
( म.ज.वि.)
पन्नसा
महीय
प्राचीन अर्धमागधी की खोज में / के. आर. चन्द्र
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प्राकृत
हं [ अन्य संस्करण]
गिहाणि [ पुण्यत्रिं.]
सुहृमेनँ [आल्सडर्फ]
वाया [ आल्सडर्फ ]
आतहिताय ( म. जै. वि.]
भवंति [ पुण्यवि.]
मुच्चए [आल्सडर्फ ]
इच्छे [अन्य]
विहरे [अन्य]
(जै. वि. भा. )
पण्णया
मही
संस्करण
रुक्खं [जे.वि.भा.]
गिहाई [अन्य]
सुमेण [अन्य]
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वायाइ, वायाए [अन्य]
आयहियाए [अन्य]
होंति [अन्य]
मुच्चती, मुच्चई [अन्य]
इच्छेज्ज [ पुण्यवि.]
विहरेज्ज [ आल्सडर्फ ]
(अ. सूत्र नं.)
परवर्ती काल के शब्द और रूपों ने किस प्रकार लेहियों और संपादकों को प्रभावित किया हैं तथा साथ ही साथ प्राचीन शब्द और रूप बच भी पाये हैं उनका यह स्पष्ट चित्र उपस्थित हो रहा है ।
1.6.8
1.6 13
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