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आगम -ग्रंथों में .....अध मागधी की स्थिति
(म. जै. वि. संस्करण)
(पाठान्तर) अनितियं
अणिच्चं (आचा. 1.1.5.45) सहसम्मुइया
सहसम्मुइए (आचा. 1.1 1.2) अणुपुत्वीय
अणुपुवीए (आचा. 1.8.8.230) पमज्जिया
पमज्जिज्जा (आचा. 1.9.1 273) आचारांग के ही किसी न किसी संस्करण में ऊपरवाले पाठान्तर मूल पाठ के रूप में अपनाये गये हैं जो परवर्ती काल के पाठ हैं । (७) श्रुतं मे भगवता...के प्राकृत पाठ के विषय में (अ) आचारांग (म. जै. वि.) के प्रारम्भ में ही इस प्रकार ..
का पाठ है :सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं (1.1.1.1) ।।
(ब) मूलाराधना पर विजयोदया टीका2 का पाठ है :____ सुदं मे आउस्संतो ! भगवदा एवमक्खादं । (स) सूत्रकृतांग में एक जगह (2.2.694 ) पाठ इस प्रकार है :
सुतं मे आउसंतेणं भगवता एवमक्खातं (म.ज.वि.) ।। (द) इसिभासियाइ के हरेक अध्ययन में 'अरहता बुइतं' पाठ
मिलता है जिसमें मूल 'त' यथावत् है परंतु ऊपर दिये गये पाठों में एक में त का द और एक में त का य मिल रहा है ।
1. अन्य प्रमाणों के अनुसार यही पाठ सही है । मुद्रित ‘सहसम्मुइयाए' पाठ में दो
विभक्तियाँ-या और- ए लगी हैं । देखिए : 'सहसम्मुयाए' पाठ पर कुछ चर्चा;
A.I.O.C. Proceedings, Calcutta, 1986 2. आचारांग, प्रस्तावना, पृ. 36 (म. जै वि. संस्करण) ।
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