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करने वाले छोटे-छोटे मन्दिर और उनकी मूर्तियों को बीच में से हटवा दिया ।
जिस प्रकार धर्मदृष्टि उद्घाटित होते ही जीवन दर्शन के क्षितिजेां का विस्तार होता है उसी प्रकार जीर्णोद्धार के बाद इन धर्मस्थानों के क्षितिज भी विस्तृत हो गए ।
एक अमेरिकन यात्री ने एक बार कस्तूरभाई से पूछा ! यदि कल ही आपकी मृत्यु हो जाय तो......!
कस्तूरभाई ने सस्मित कहा : मुझे आनन्द होगा । किन्तु बाद में क्या ? बाद में क्या होगा इसकी मुझे चिन्ता नहीं है । आपका क्या होगा उसका विचार नहीं आता है क्या ! मैं पुनर्जन्म में आस्था रखता हूं । उसका तात्पर्य ?
जैन तत्वज्ञान के अनुसार ईश्वर जैसा कोई व्यक्ति विशेष नही है । प्रत्येक प्राणी और मैं स्वयं भी ईश्वर की स्थिति को पहुँच सकता हूँ अर्थात् मुझे मेरे चरित्र को उतना ऊँचा ले जाना चाहिये .
और यह विश्वास उत्पन्न करना चाहिए कि मैं क्रमशः उस पद के लिए योग्य बन रहा हूँ । इस विचारधारा में मुझे आस्था और गौरव है । उस स्थिति तक कैसे पहुँचा जा सकता है ? उसके उपाय भी हमारे दर्शन में बताये हैं :- सत्य बोलना चाहिए, धन के प्रति ममत्व नहीं रखना चाहिए, हिंसा नहीं करनी चाहिए, आदि । इतने उच्च आदर्श शायद ही दूसरी जगह पर देखने को मिले ।
जैन धर्म क्या है ? सत्य तो यह है कि जैन धर्म एक धर्म नहीं अपितु जीवन जीने की
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