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मूल अर्धमागधी को पुनः रचना : एक प्रयत्न
13, अर्धमागधी भी है – लोग और (4) महाराष्ट्री भी है - लोयं, णिइए, खेयण्ण ।
(5) भाषा-संबंधी दूसरी ओर अशोक के समय की पूर्वी क्षेत्र की विशेषताएँ भी हैं - लोग, नितिए और (खेय)न्ने(हि') जैसे शब्दों में ।
(6) इस प्रकार के विश्लेषण से यह तो भाषाओं की खीचड़ी हो ऐसा प्रतीत होता है । ___ हरेक सम्पादक के पास जो भी सम्पादकीय सामग्री (हस्तप्रते) थी उनमें पाठान्तर भी मौजूद थे परन्तु उनमें से अमुक अमुक पाठान्तरों को छोड़ दिया गया है । वास्तव में ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से उन पाठों में से किसी एक में मूल भाषा की प्राचीनता सुरक्षित रह भी गयी हो ? उदाहरणार्थ-.
(1) शुबिंग महोदय द्वारा उपयोग में ली गयी सामग्री में से चूर्णि और 'जी' संज्ञक प्रत में 'खेत्तन्नेहिं पाठ उपलब्ध था ।
12) जैन विश्व भारती की 'च' संज्ञक प्रत में 'खेत्तन्नेहि" पाठ था ।
(3) म. जै. वि. के संस्करण में उपयोग में ली गयी चूर्णि में 'ख़ित्तण्ण' पाठ था ।
(4) ऐसी अवस्था में 'खेत्तन्न' शब्द को अपने प्राचीन मूल रूप में नहीं अपना कर 'खेयन्न' या 'खेयण्ण' क्यों अपनाया गया जब भाषाकीय विकास की दृष्टि से ये दोनों ही रूप परवर्ती हैंपहले खेयन्न और बाद में खेयण्ण ।
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