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________________ 101 हुं कोने शरणे जाउं ?(९५) आ डोमिला छंद कहीने ए चंद्रवदना, कमळनयनानां नेत्र निष्पंद बनी गया. ते न तो कशुं बोलती हती, न तो त्यां रहेला बीजा जनने जोती हती. भीत परना चित्रमा आलेखी होय तेवी ते मुग्धा क्षणेक देखाई.(९६) निःश्वासने लीधे तेनी श्वासोच्छ्वासनी क्रिया रूंधाई गई. मुखथी ते मोटेथी रडती हती. कामदेवना सरे वींधायेली ए चंचळनयनाए प्रियनुं संगसुख संभारीने सहेज तीरछी दष्टिए पथिकनी सामे एवी रीते जोयुं, जे रीते धनुष्यटंकार सांभळीने त्रस्त बनेली हरणी जुए. (९७) पथिक बोल्यो, 'तु धीरज धर. स्थिर थईने क्षणेक आश्वासन ले. ओढणाथी तारुं पूर्ण चंद्र समुं मुख लूछ.' एनां वचन सांभळीने विरहभारे भांगी पडती ए मुग्धाए लज्जित बनीने वस्त्रांचलथी मुख लूछ्यु.(९८). पछी ते बोली, 'हे पथिक, कामदेवनी पासे मारुं बळ चालतुं नथी, कारण के मारो प्रिय मारामां अनुरक्त होवा छतां अने हुं निर्दोष होवा छतां ए मारा प्रत्ये विरक्त बन्यो छे. ते बीजानी वेदना प्रीछतो नथी. ए नि:स्नेह अने चंचळ मन वाळा खलने तारे एक मालिनी वृत्त कहेवू. (९९). हे सुभग, जो त्यारे सुरतने अंते में एम जाण्युं होत के तारो अनुराग अने स्नेह ओगळी गयो छे अने तेनी शोभा नष्ट थई छे तो ए नवरंगनो एक कुंभ भरीने हुं राखी मूकत, अने विरक्त बनेलुं तारुं हृदय हुं तेमां फरी बोळत. (१००) आकाशामांथी रंग ओसरी जाय तो तेमां फरी रंग प्रगटे छे. अंग अतिशय निःस्नेह बने तो फरीथी तेनो अभ्यंग करी शकाय छे. धन हारी जईए तो जीतीने ते पार्छ मेळवी शकाय छे. पण प्रियनुं चित्त विरक्त बने तो शुं करी शकाय?(१०१) पथिक बोल्यो, हे विशालाक्षी तुं धीरज धरीने मन ठेकाणे राख. आंखमांथी अतिशय वहेती आंसुधारा थोभा. प्रवासीओने अनेक कारणे परदेश जवू पडे छे अने त्यां एमने भ्रमण करवू पडे छे. एमनुं प्रयोजन न सधाय त्यां सुधी हे सुंदरी, तेओ पाछा वळता नथी. (१०२) विदेशमां फरतां एमना पर पण कामदेवना बाणनो प्रहार थाय छे. पोतानी गृहिणीने संभारता तेओ पण विरहनो भोग बने छे. रातदिवस पोतानी प्रियतमाना शोकनो भार न सही शकता ए प्रवासीओ पण हे मुग्धा तारी जेम क्षीण थता होय छे.(१०३) ए वचनो सांभळीने ते दीर्ध नेत्र वाळी अने उत्कट मदनावस्था धरती ए मुग्धाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001433
Book TitleSamdesarasaka of Abdala Rahamana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbdul Rahman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageEnglish, Gujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_English & Literature
File Size6 MB
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