________________
102
मुक्त स्वरे एक अडिल्ला कह्यो. (१०४ क)
हे पथिक, मारा कान्तनो मारी उपर हवे स्नेह नथी रह्यो एम हुं धारुं छु, तेम छतां तुं मारो संदेशो तेने कहेजे के नाक सुधी व्यापेलो विरहाग्नि मारा हृदयने रात्रिना अंत सुधी बाळतो रहे छे. (१०४ ख)
मदनना आयुधे मारेली हुं वधु विस्तारथी संदेशो कही शकती नथी. तुं अमारी आ अवस्था मारा कान्तनी पासे वर्णवजे: अंगो तूटे छे, अतिशय अरुचि प्रवर्ते छे, रात्रे उजागरो थाय छे, रस्ते जतां मारी गति विह्वळ अने आळसथी मंद बने छे. (१०५)
केशपाश पर पुष्पो बांध्यां नथी. आंखमां आंजेलुं काजळ गाल पर गळे छे. प्रियतमने मळवानी आशाथी जेटलुं मांस शरीरमां वधे छे, ते विरहाग्निथी बळीने पार्छ ऊतरी जाय छे.(१०६)
विराहनी उष्णताए बळती अने आशा जळे सिंचाती एवी हुं नथी जीवती, नथी मरती-मात्र धगधगती रहुं छु. ते पछी फरी फरी पथिकने रोकीने, ए दीर्घोक्षीए पोतानी आंखो लूछीने एक फुल्लड छंद कह्यो (१०७)
प्रियने झंखता मारा हृदयने जेम सुवर्णकार करे छे तेम (कामदेव) विरहाग्निथी बाळीने तेना पर आशाजळ सींचे छे. (१०८)
पथिक बोल्यो, 'हुँ जई रह्यो छु त्यारे तुं वारंवार रडीने मने अमंगळ न कर. आंसु रोकी राख' 'हे पथिक, तारी इच्छा पूरी थाओ तारुं आजे सीधाववानुं पार पडो. हुं रडी नथी, पण विरहाग्निना धुमाडाथी मारा नयन स्रव्यां छे.' (१०९)
पथिक बोल्यो, 'हे विशालाक्षी कहेवानुं शीध्र कही दे, सूर्य दिवसना शेष भागे पहोच्यो छे, तो दया करीने हवे तुं पाछी वळ'. पथिक तुं जा. तारुं वारंवार मंगळ थाओ. पण तुं प्रियने हवे एक मडिल्ला अने एक चूडिल्लो कहेजेः (११०)
मारुं शरीर दीर्ध अने उष्ण निसासाथी शोषाय छे. अश्रुजळ अटकतां नथी. मारु हैयुं जईने द्वीपांतरमा पड्युं छे, जेम पतंगियुं दीवामां पडे. (१११)
उत्तरायणमां दिवसो लंबाय छे, तो दक्षिणायनमा रातो लंबाय छे - एवो परापूर्वनो नियम छे. पण जेमां रातो अने दिवसो बंने लंबाय छे एवं आ त्रीशुं विरहायण थयुं छे. (११२)
हे पथिक, दिवसनो (थोडोक) शेष भाग ज रह्यो छे, ते आथमी गयो छे. तो तुं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org