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ाता है।
वैदिक धर्मसू त्रुगत यतिधर्म ....आचार की तुलना
२०१ प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । ये 6 क्रियाएं श्रमणको प्रतिदिन दोनों समय अवश्य करनी होती है।
वैदिक धर्मसूत्रकारों ने संन्यासियों के आहिनक कृत्यों के विषयमें कुछ विशिष्ट नियम (आचार) निर्मित किये हैं जिसके अनुसार उन्हें शौच, दन्तधावन स्नान आदि गृहस्थों की भांति ही करने चाहिये । वशिष्ठ धर्म सूत्रा (4-11) विष्णु धर्मसूत्र (60-26), शंख धर्मसूत्रा( 16-23-24 ) का कहना है कि संन्यासी को गृहत्थों के समान ही क्रम से तीन एवं चार बार शौच कर्म (शरीरशुद्धि) करना चाहिये।
___भगवान महावीर ने साधुओं के लिए प्रत्येक परिस्थिति में स्नान का स्पष्ट निषेध किया है । स्नान के सम्बन्ध में कोई अपवाद नहीं रखा। उत्तराध्ययन आचारचूला, सूत्राकृतांग, दशौकालिक" आदि में श्रमणों के लिए स्नान न करने का वर्णन है।
वैदिक धर्मसूत्र ग्रन्थो के अनुसार संन्यासी (यति) को अपना गुप्तांग ढकने के लिए वस्त्र धारण करना चाहिये । उसे अन्य लोगों द्वारा छोडा हुआ जीर्ण-शीर्ण किन्तु स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिये । धर्मसूत्रकार वशिष्ठ के अनुसार संन्यासी को अपने शरीर को वस्त्र के टुकडेसे अर्थात् शार्टी (गात्रिका) से ढकना चाहिये या मृगचर्म या गायों के लिये काटी गई घास से । जैन आगम ग्रन्थोंके अनुसार कोई मुनि तीन वस्त्र रखता है, कोई दो, कोई एक और कोई निर्वस्त्र रहता है । यह आचार की भिन्नता शारीरिक सहनन, धृति आदि हेतुओं से होती है। ___यज्ञ वैदिक संस्कृति की प्रमुख मान्यता रही है। पैदिक दृष्टि से यज्ञकी उत्पत्तिका मूल विश्वका आधार है। पापांके नाशके लिये, शत्रुओं के संहार के लिये, विपत्तियों के निवारण के लिये, राक्षसों के विध्वंसके लिये, व्याधियों के परिहारके लिये यज्ञ आवश्यक माने गये हैं । सन्यास आश्रममे प्रवेश करनेके लिये व्यक्तिको "प्रजापति यज्ञ' करनेका विधान विभिन्न धर्म सूत्रों में बतलाया
____14. Seminar on Agama
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