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कु. रीता विश्नोई गया है । जैन आगममें यज्ञका विरोध किया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र के नौवे, बारहवें, चौदहवें और पच्चीसवें अध्ययनोंमें यज्ञका विरोध किया गया है और इसका कारण बताते हुये कहा गया है कि इसमें जीवों की हिंसा होती है।
वैदिक धर्म सूत्रा ग्रन्थोंमे यतिधर्म के आचारों का नाम विशेष नहीं पाया जाता है जैसा कि जैन आगम ग्रंथोंमें पाया जाता है । आचारांग सूत्रमें मुनिधर्म के पांच आचारो का वर्णन मिलता है-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार ।
इस प्रकार उक्त विवेचनसे यह स्पष्ट है कि यतिधर्म एवं अनागार धर्म के अनेकों आचार वैदिक धर्म सूत्र ग्रन्थों एवं जैन आगम ग्रन्थोंमें समान रूपसे पाये जाते हैं। वैदिक धर्म सूत्रकारों एवं स्मृतिकारों ने आचारकी विवेचना केवल संहिताके रूपमें की है जब कि जैन आगमों में आचारकी विवेचना सूक्ष्म से सूक्ष्मतम रूप से की गयी है।
१. मनुस्मृति 1-168 २. अगाण कि' मारो? आयारो । - नन्दीसूत्र, 40 में उद्धत ३. गौतम धर्म सूत्र 3.13 एव' 20 ४. वशिष्ठ धर्म सूत्र 10.21-22 एवं 25 ५. आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2.4.9.13 ६. बोधायन धर्मसूत्र 2.10.58 ७. आचारो, द्वितीय अध्ययन, पचम उद्देशक, सूत्र 113 ८. आयारो, लोकसार (पंचम अध्ययन) चतुर्थ उद्देशक, सूत्र 80. ९. लघु विष्णु धर्मसूत्र, 4.29-30 १०. शख घम सूत्र 7.7 २१. विष्णु धर्मसूत्र 96.14-17 १२. आयारो, लोकसार (पञ्चम अध्ययन) चतुर्थ उद्देशक, सूत्र 69 १३. वशिष्ट धम सूत्र 10.12-15 १४. शखधर्म सूत्र 7.6 १५. मनुस्मृति 6.50-51
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