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प्रश्न याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज
अस्तित्व रख रहे हैं । आशा है, इस सम्बन्ध में विद्धत्वर्ग आगे और मन्थन करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा ।
प्रश्नव्याकरण और ऋषिभाषित की विषयवस्तुकी
समरूपता का प्रमाण
ऋषिभाषित और प्राचीन प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तुओं की एकरूपता का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण हमें ऋषिभाषित के पार्श्व नामक ३१ वें अध्ययन में मिल जाता है । इसमें पार्श्व की दार्शनिक अवधारणाओं की चर्चा है । इस चर्चा के प्रसंग में ग्रन्थकार ने स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया है कि व्याकरणप्रभृति ग्रन्थों में समाहित इस अध्ययन का ऐसा दूसरा पाठ भी मिलता है । यह मूलपाठ इस प्रकार है
' वागरणगंथाओ पभिति सामित्तं
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इमं अज्झणं ताव इमो बीओ पाढो दिस्सति -
इसका तात्पर्य तो यह है कि ऋषिभाषित की विषयवस्तु प्रश्नव्याकरण में भी समाहित थी । यद्यपि यह एक विवादास्पद प्रश्न होगा कि प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु से ऋषिभाषित का निर्माण हुआ या ऋषिभापित की विषयवस्तु से प्रश्नव्याकरण का । लेकिन यह सुस्पष्ट है कि किसी समय प्रश्नव्याकरण और ऋषिभाषित की विषयवस्तु समान थी और उनमें कुछ पाठान्तर भी थे । अतः वर्तमान ऋषिभाषित में प्राचीन प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का होना निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है । साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि मूल प्रश्नव्याकरण में पार्श्व आदि प्राचीन अर्हत् ऋषियों के दार्शनिक विचार एवं उपदेश निहित थे ।
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