SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डा० सागरमल जैन सम्बन्धित संस्करण भी पूरी तरह विलुप्त नहीं हुआ होगा अपितु उसे उससे अलग करके सुरक्षित कर लिया गया है । यदि कोई विद्वान् इन सब ग्रन्थों को लेकर उनकी विषयवस्तु को समवायांग, नन्दीसूत्र एवं धवला में प्रश्न व्याकरण की उल्लिखित विषय सामग्री के साथ मिलान करे तो यह पता चल सकेगा कि प्रश्नव्याकरण नामक जो अन्य ग्रन्थ उपलब्ध हैं वे प्रश्नव्याकरण के द्वितीय संस्करण का ही अंश है या अन्य है । यह भी सम्भव है कि समवायांग और नन्दी के रचनाकाल में प्रश्नव्याकरण नामक कई ग्रन्थ वाचना-भेद से प्रचलित हो और * उनमें उन सभी विषयवस्तु को समाहित किया गया हो, इस मान्यता का एक आधार यह है कि ऋषिभाषित, समवायांग, नन्दी एवं अनुयोगद्वार में 'वागरणगथा' एवं पण्हावागइणाई'- ऐसे बहुवचन प्रयोग मिलते हैं । इससे ऐसा लगता है कि इस काल में वाचनाभेद से या अन्य रूप अनेक प्रश्नव्याकरण उपस्थित रहे होंगे। इन प्रश्नव्याकरणों की संस्कृत टीका सहित ताड़पत्रीय प्रतियां मिलना इस बात की अवश्य सूचक है कि ईसा की ४-५ वीं शती में ये ग्रन्थ अस्तित्व में थे क्योंकि ९-१० वीं शताब्दी में जब इनकी टीकाएं लिखि गई, तो उसके पूर्व भी ये ग्रन्थ अपने मूल रूप में रहे होंगे । सम्भवतः ईस्ग की लगभग २-३ री शताब्दी में प्रश्नव्याकरण में निमित्तशास्त्र सम्बन्धी सामग्री जोडी गई हो और फिर उसमें से ऋषिभाषित का हिस्सा अलग किया गया और उसे विशिष्ट रूप से एक निमित्तशास्त्र का ग्रन्थ बना दिया गया। पुन: लगभग ७ वीं शताब्दी में यह निमित्तशास्त्रवाला हिस्सा अलग किया गया और उसके स्थान पर पांच आश्रव तथा पांच संवरद्वार वाला वर्तमान संस्करण रखा गया। जैसा कि मैंने सूचित किया कि प्रश्नव्याकरण के पूर्व के दो संस्करण भी चाहे उससे पृथक् कर दिये गये हों किन्तु वे ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन और प्रश्नव्याकरण नामक अन्य निमित्तशास्त्र के ग्रन्थों के रुप में अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy