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________________ डा० सागरमल जैन 87 प्रश्नव्याकरण और जयपायड की विषयवस्तु की आंशिक समानता 'प्रश्नव्याकरणाख्य जयपायड' नामक जिस ग्रन्थ का हमने उल्लेख किया है, उसकी विषय सामग्री निमित्तशास्त्र से सम्बन्धित है । पुनः उसमें कर्ता ने तीसरी गाथा में ' पण्हं जयपायडं वोच्छं ' कहकर के प्रश्नव्याकरण और जयपायङ की समरूपता को स्पष्ट किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ की इसी गाथा की टीका से ग्रन्थ की विषयवस्तु को स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि इसमें नष्टमुष्टिचिन्तालाभालाभसुखदुःखजीवनमरण' आदि सम्बन्धी प्रश्न हैं । इस उल्लेख से ऐसा लगता है कि धवलाकार ने प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का जिस रूप में उल्लेख किया है उसकी इससे बहुत कुछ समानता है। प्रस्तुत ग्रन्थ के विषयों में मुष्टिविभाग प्रकरण, नष्टिका चक्र, संख्या प्रमाण, लाभ प्रकरण, अस्त्रविभाग प्रकरण आदि ऐसे हैं जिनकी विषय वस्तु समवायांग में प्रश्नव्याकरण के वर्णित विषयों से यत्किचित् साम्यता हो सस्ती है।२२ दुर्भाग्य यह है कि प्रकाशित होते हुए भी विद्वानों को इस ग्रन्थ की जानकारी नहीं है। यह जैन निमित्तशास्त्र का प्राचीन एवं प्रमुख ग्रन्थ है । ग्रन्थ की भाषा को देखकर सामान्यतया यह अनुमान किया जा सकता है कि यह ईस्वी सन् की चौथी-पांचवी शताब्दी की हो सकती है । अन्य के लिए प्रयुक्त पायड या पाहुड शब्द से भी यह फलित होता है कि यह ग्रन्थ लगभग पांचवी शताब्दी के आसपास की रचना होना चाहिए, क्योंकि कसायपाहुङ एवं कुन्दकुन्द के पाहुडग्रन्थ इसी कालावधि के कुछ पूर्व की रचनाएं हैं । सूर्यप्रज्ञप्ति में भी विषयों का वर्गीकरण पाहुड़ों के रूप में हुआ है। अतः यह सम्भावना हो सकती है कि जयपायङ प्रश्नव्याकरण के द्वितीय संस्करण का कोई रुप हो, यद्यपि इस सम्बन्ध में अन्तिमरूप से तभी कुछ कहा जा सकता है जब प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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