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________________ डा० सागरमल जैन . ..... ऋषिभाषित वाला अंश अलग हुआ तथा बीच का कुछ काल ऐसा रहा जब वही विषयवस्तु दोनों में समान्तर बनी रही। यहां हमें यह भी स्मरण रखना होगा. कि जहां स्थानांग में प्रश्नव्याकरण के दस अध्ययन होने का उल्लेख है, वहां समवायांग में इसके ४५ उद्देशनकाल और नन्दी में ४५ अध्ययन होने का उल्लेख है-यह आकस्मिक नहीं हैं । यह उल्लेख प्रश्नव्याकरण और ऋषिभाषित की किसी साम्यता का संकेतक है । वर्तमान प्र-नव्याकरण में दस अध्ययन होना भी सप्रयोजन है- स्थानांग के पूर्व विवरण से संगति बैठाने के लिए ही ऐसा किया गया होगा । दस और पैंतालीस के इस विवाद को सुलझाने के दो ही विकल्प हैं- प्रथम सम्भावना यह हो सकती है कि प्राचीन संस्करण में दस अध्याय रहे हों और उसके ऋषिभाषितवाले अध्याय के ४५ उद्देशक रहे हों अथवा मूल प्रश्नव्याकरण में वर्तमान ऋषिभाषित के ४५ अध्याय ही हों क्योंकि इनमें भी ऋषिभाषित के साथ महावीरभाषित और आचार्यभाषित का समावेश हो ही जाता है। यह भी सम्भव हैं कि वर्तमान ऋषिभाषित के ४५ अध्यायों में से कुछ अध्याय ऋषिभाषित के अन्तर्गत और कुछ आचार्यभाषित एवं कुछ महावीरभाषित के अन्तर्गत उद्देशकों के रूप में वर्गीकृत हुए हों । महत्त्वपूर्ण यह है कि समवायांग में प्र*नव्याकरण के ४५ अध्ययन न कहकर ४५ उद्देशनकाल कहा गया है, किन्तु प्रश्नव्याकरण से अलग करने के पश्चात् उन्हें एक ही ग्रन्थ के अन्तर्गत १५ अध्यायों के रूप में रख दिया गया हो । एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी हैं कि समवायोग में ऋपिभाषित के ४.४ अध्ययन कहे गये हैं जबकि वर्तमान ऋषिभाषित में ४५ अध्ययन हैं। क्या वर्धमान नामक अध्ययन पहले इसमें सम्मिलित नहीं था । क्यों कि, इसे महावीरभाषित में परिगणित किया गया था या अन्य कोई कारण था, हम नहीं कह सकते । यह भी सम्भव है कि उत्कटवादी अध्याय में किसी ऋषि का उल्लेख नहीं है । साथ ही यह अध्याय चार्वाक दर्शन का प्रतिपादन करता हैं । अतः इसे ऋषिभाषित में स्वीकार नहीं किया हो । समवायांग और नन्दीसूत्र के मूलपाठो में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है वह यह कि नन्दीसूत्र में प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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