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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज ग्रन्थकारने उसे अनुश्रुति के रूप में श्वेताम्बर या यापनीय परम्परा से प्राप्त किया होगा । धवला में वर्णित विषय वस्तुवाला कोई प्रश्नव्याकरण अस्तित्व में भी रहा होगा, यह कहना कठिन हैं। जैसा कि हम पूर्व में कह चुके हैं कि समवायांग का प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु सम्बन्धी विवरण स्थानांगकी अपेक्षा परवर्ती काल का है। फिर भी इसमें कुछ तथ्य ऐसे अवस्य हैं जो हमारी इस धारणा को पुष्ट करते हैं कि प्रश्नव्याकरण की मूलभूत विषयवस्तु ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित ही थी और जिसका अधिकांश भाग आज भी ऋषिभाषित आदि के रूप में सुरक्षित है। क्योंकि समवायांग में भी प्रश्नव्याकरण की विषय वस्तु को प्रत्येकबुद्धभाषित, आचार्यभाषित, महर्षिवीरभाषित कहा गया है । स्थानांग में जहां ऋषिभाषित शब्द है वहाँ समवायांग में प्रत्येकबुद्धभाषित शब्द है । यह स्पष्ट है कि ऋषिभाषित के प्रत्येक ऋषि को आगे चलकर जैनाचार्यों ने प्रत्येक बुद्ध के रूप में स्वीकार किया हैं और यह शब्द-परिवर्तन उसी का सूचक है। यही कारण है कि इसमें ऋषिभाषित के स्थान पर प्रत्येकबुद्धभाषित कहा गया है । हमारे कथन की पुष्टि का दूसरा आधार यह है कि समवायांग में प्रश्नव्याकरण के एक श्रुतस्कन्ध और ४५ अध्याय माने गये हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि समवायांग के प्रश्नव्याकरण की विषय-वस्तु सम्बन्धी इस विवरण के लिखे जाने तक भी यह अवधारणा अचेतनरूप में अवश्य थी कि प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु प्रत्येकबुद्धों, धर्माचार्यो और महावीर के उपदेशों से निर्मित थी, यद्यपि इस काल तक ऋषिभासित को उससे अलग कर दिया गया होगा और उसके ४५ अध्ययनों के स्थान पर नैमित्तशास्त्र सम्बन्धी विद्यायें समाविष्ट कर दी गई होंगी। यद्यपि निमित्तशास्त्र के विषय जोडने का ही ऐसा कुछ प्रयत्न सीमितरूप में स्थानांग में प्रश्नव्याकरण सम्बन्धी विवरण लिखे जाने के पूर्व भी हुआ होगा । मेरी धारणा यह है कि प्र-नव्याकरण में प्रथम निमित्तशास्त्र का विषय जुड़ा और फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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