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________________ डा० सागरमल जैन .. 75 विस्तृत हो गया है। स्थानांग में प्रश्नव्याकरण के दस अध्ययन बताये गये है जबकि समवायांग उसमें ४५ उद्देशक होने की सूचना देता है । 'उवमा' और 'संखा' नामक स्थानांग में वर्णित प्रारम्भिक दो अध्ययनों का यहां निर्देश ही नहीं है । हो सकता है कि 'उवमा' की सामग्री ज्ञाताधर्मकथा में और ‘संखा" की सामग्री-यदि उसका सम्बन्ध संख्या से था तो स्थानांग या समवायांग में डाल दी गई हो। 'कोमलपसिणाई ' का भी उल्लेख नहीं है। इन तीनों के स्थान पर 'असि' 'मणि' और आदित्य' ये तीन नाम नये जुड गये हैं, पुनः इनका उल्लेख भी अध्ययनों के रूप में नहीं है । समवायांग का विवरण स्पष्टरूप से यह बताता है कि प्रश्नव्याकरण का वर्ण्य-विषय चमत्कारपूर्ण विविध विधाओं से परिपूर्ण है । यहाँ इसिभासियाई, आयरियाभासियाई और महावीरभासियाई इन तीन अध्ययनों का विलोप कर यह निमित्तशास्त्र सम्बन्धी विवरण इनके द्वारा कथित है-यह कह दिया गया है । वस्तुतः समवायांग का विवरण हमें प्रश्नव्याकरण के किसी दूसरे परिवर्धित संस्करण की सूचना देता है जिसमें नैमित्तशास्त्र से सम्बन्धित विवरण जोडकर प्रत्येकबुद्धभाषित (ऋषिभाषित) आचार्यभाषित और वीरभाषित (महावीरभाषित) भाग अलग कर दिये गये थे और इस प्रकार इसे शुद्धरूप से एक निमित्तशास्र का ग्रन्थ बना दिया गया था। उसे प्रमाणिकता देने के लिए यहाँ तक कह दिया गया कि यह प्रत्येकबुद्ध आचार्य और महावीरभाषित है। तत्त्वार्थवार्तिक में प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का जो विवरण उपलब्ध है वह इतना अवरय सूचित करता है कि ग्रन्थकार के सामने प्रश्नव्याकरणकी कोई प्रति नहीं थी उसने प्रश्नव्याकरणकी विषयवस्तु के सम्बन्धमें जो विवरण दिया है, वह कल्पनाश्रित ही है । यद्यपि धवला में प्रश्नव्याकरण के सम्बन्धमें जो निमित्तशास्र से सम्बधित कुछ विवरण हैं, वह निश्चय ही यह बताता हैं कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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