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________________ 18 प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज व्याकरण के ४५ अध्ययन हैं-ऐसा स्पष्ट पाठ हैं जबकि समवायांग में ४५ अध्ययन ऐसा पाठ न होकर ४५ उद्देशन काल है, मात्र यही पाठ हैं । हो सकता है कि समवायांग के रचना-काल तक वे उद्देशक रहे हों, किन्तु आगे चलकर वे अध्ययन कहे जाने लगे हों। यदि समवायांग के कालतक ४५ अध्ययनों की अवधारणा होती तो समवायांगकार उसका उल्लेख अवश्य करता क्योंकि समवायांग में अन्य अंग आगमों की चर्चा के प्रसंग में अध्ययनों का स्पष्ट उल्लेख है। इस सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी हैं कि क्या निमित्तशास्र एवं चामत्कारिक विद्याओं से युक्त काई प्र*नव्याकरण बना भी था या यह सब कल्पना की उडाने हैं ? यह सत्य है कि प्रश्नव्याकरण की पद-संख्या का समवायांग, -नन्दी, नन्दीचूर्णी और धवला में जो उल्लेख है, वह काल्पनिक है । यद्यपि समवायांग और नन्दी प्रश्नव्याकरण के पदों की निश्चित संख्या नहीं देते हैं-मात्र संख्यात-शत-सहस्त्र-ऐसा उल्लेख करते हैं, किन्तु नन्दीचूर्णी एवं समवायांगवृत्ति में उसके पदों की संख्या ९२१६००० और धवला" में ९३१६००० बतायी - गई है, जो मुझे तो काल्पनिक ही अधिक लगती है। मेरी अवधारणा यह है कि स्थानांग, समवायांग, नन्दी, तत्त्वार्थ, राजवार्तिक घवला एवं जयधवला में प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का जिस रूप में उल्लेख है वह पूर्णतः काल्पनिक चाहे न हो किन्तु उसमें सत्यांश कम और कल्पना का पुट अधिक है । यद्यपि निमित्तशास्त्र के विषयको लेकर कोई प्रभव्याकरण अवश्य बना होगा फिर मी उसमें समवायांग और धवला में वर्णित समग्र विषयवस्तु एवं चामत्कारिक विधाएं रही होंगी यह कहना कठिन ही है । - इसी सन्दर्भ में समवायोग के मूलपाठ 'आदागंगुट्ठबाहुअसिमणि खोमआइच्च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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