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रिट्ठणेमिचरिउ
घत्ता
तहिं वणे दिणमणि-अत्थवणे वहल-दल्हो दीहर-पारोहहो । गिरि-गुह-मुहे गयवरई जिह आवासियई मूले णग्गोहहो ॥ ९
[९] [ग]उ ताम विओयरु कमल-सरु जं मणहरु परिमल-मुक्क-सरु जं णिब्भर-भमिर-भमर-भमिउ जं सुर-बहु-सुर-किण्णर-भमिउ जं मलयाणिल-संचालियउं जं कमल-संड-संचालियउ जं विविह-विहंगम-परिमलिउ जं कुवलय-केसर-परिमलिउ जं वण-करि-कर-णियराहयउ जं सुरहि-कुसुम-रय-राहयउ तं पाणिउ आणिउ तेण तहिं स-सहोयरु राउ णिवण्णु जहिं संणमिउ णलिणि-णव-पण्ण-पुडु गउ परम-विसायहो भीमु फुडु परिपालिय-सयल-महीयलहो वट्टइ का वत्य जुहिट्ठिलहो
घत्ता जो पंडव कुरु-कुल-तिलउ देसु असेसु आसि भुजंतउ । सो परमेसरु विहि-वसेण पेक्खु केम तिण-सत्थरे सुत्तउ ॥ ९
[१४] चिंतंतु परिट्ठिउ भीमु जहिं विज्जाहर-कण्ण णहेण तहिं संपाइय पासे विओयरहो णं सच्चहाम दामोयरहो मंदोवरि णं दसकंधरहो णं रइ पुडुच्छु-धणुद्धरहो परमेसर करि पाणिग्गहणु अच्छिय णियंति तउ आगमणु ४ किं संकहि हउं विज्जाहरिय णामेण हिडिंवा सुंदरिय सायरहो मज्झे जण-धण-पउरु जाणिज्जइ संझागार-पुरु तहिं सीहघोसु णामेण पहु दूसह-संगाम-सहास-बहु सो जणणु सुदरिसण जणणि महु तउ दिण्णीं करि परिणयणु लहु ८
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