________________
एगुणवीसमो संधि
४७
धत्ता .
वुत्त दसारुह-सोयरिए कहिं ते पंडव कहिं सा कोंति । अम्हई अवरई वंभणइं जाई समीहहिं ताई ण होंति ॥ ९
[७] मुहयंदोहामिय-छण-ससिंहे मण-पसरु णिवारेवि तावसिहे सहु जणणिए णयणाणंदयरु गय पंडव ते तिसिंग-णयरु जहिं पहु पचंड-वाहणु पवलु रण-भर-धुर-धरणु वीरधवलु विमलप्पह णामें तासु पिय णं परम जिणेदहो मोक्ख-सिय उप्पणउ कण्णउ विहि-मि दह इंदीवर-लोयण परम-मुह सिरि-हिरि-वइ-सुंदरि-सुप्पहउ अच्छरियासोय-गुणप्पहउ तव-तोयहो पुव्व-णिवेइयउ जउ-भवण-डाह-उव्वेइयउ अच्छंति जाम हिट्ठाणणउ तहिं काले पराइउ तव-तणउ
पत्ता दसह-मि लाएवि रणरणउ दसह-मि दस जे अणंगावत्थउ । गउ वण-गहणे हिडिवु जहिं भीमहो रण-धुर धरिवि समत्थउ ॥ ९
[८] णियच्छियं महावणं अणेय-दारु-दारुणं अणेय-पव्वआउलं अणेय-खड्ड-संकुलं अणेय-पक्खि-णीसणं अणेय-भूय-भीसणं अणेय-भिल्ल-कोक्कियं अणेय-कोल-रोक्कियं अणेय-सीह-रुंजियं अणेय वग्ध-गुंजियं अणेय-णाय-णाइयं अणेय-रिच्छ-छाइयं अणेय-भल्ल-मदियं अणेय-रिट्ठ-कंदियं अणेय-वाय-वेवियं णिसायरोवसेवियं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org