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रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता तहिं वसंत सुंदरि तव-रिद्धी पंचहिं काम-सरेहिं उरे विद्धी ॥ ९
विझसेण-पत्थिव-तणय धम्मपुत्त-धाणुक्किएण
सा गंपिणु कुंतिहे पासु गय पडिवत्ति जहारुह सयल किय उवविसण-पाय-पक्खालणेहिं पाणासण-भोज्ज-णिहालणेहि अवरेहि-मि अइ-सम्माणियर परिपुच्छिय पंडहे राणियए णव-जोव्वणे को वइराउ तर जे सुदरि तावसि-वेसु किउ स वि वाह-जलोल्लिय-लोयणिय थिय दुम्मण भूमि-पलोयणिय हउँ विंझसेण-णरवइहे सुय अवलक्खण अलइय-णाम हुय किर मई परिणेसइ धम्म-सुउ जउ-भवण-पलीवणे सो-वि भुउ अणुमरेवि ण सक्किय दइव-हय ते अच्छमि तावस-भाव गय
धत्ता वुच्चइ महुमह-फूझ्यए पंडव दड्ढा मा करेह भंति । पुण्णेहिं माए तुहारएहि को जाणइ कह-व जियंति ()॥
[६] तं णिसुणेवि बुच्चइ वालियए णव-कुवलय-दल सोमालियए मई जइ-वि कया-वि ण दिट्ठाई णिय बुद्धिए तो-वि गविट्ठाई कुरु-मते(?) सहुं दुवियइढाइं जउ-मंदिरे अण्णइं दइढाई तुम्हई पुणु पंड्डहे केराई रूवई करेवि विवरेराई मंछुडु भुक्खियई तिसाइयइं अम्हारउ आसमु आइयइं णउ अण्णहो आयइं चिंधाइं अंगई सोहगग-समिद्वाइं पहु एहु जुहिट्ठिलु दुरिसु एहु वंभणु भीमसेण-सरिसु जमलज्जुण एय जणेरि तुहुँ परिणावहि दय करि देहि सुहु
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