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एगुणवीसमो संधि
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घत्ता
णवमी कामावत्थ गय सहियहं अग्गए एम घोसइ । जइ करे लायहो पंथियहो तो महु मुझ्यहे जीविउ होसइ ॥९
[३] तं णिसुणेवि वयणु मणोहरीहे जाणाविउ जणणहो सहयरीहिं परमेसर तुम्हहं तणिय सुय विवरेरी काम-गहेण हुय पहे को वि णिहालिउ कप्पडिउ णं हियए अणंग-वाणु पडिउ विहलंघल एक्कु विं पउ ण गय सारंगि व वाह-सरेण हय सा एम देव विण्णवइ पइं जइ पहियहो कह-वि ण देहि मई तो एवहिं हले सहि सिहि सरणु विस-भक्खणु अहवइ जल-मरणु तो कण्णे दिण्ण कण्ण वरहो भीमज्जुण-जमल-सहोयरहो दस रत्ति वसेप्पिणु तहिं अजय पुणु तावस-वणु विहरंत गय
घत्ता
दिठु तवोवणु पंडवेहिं चंपय-तिलय-वउल-संछण्णउं । सम्वहो सइवहो सासणहो पहिलउ तं जे णाई उप्पण्णउं ॥ ९
[४] आसणु वसुंधर-पुरवरहो वीसाम-भुवणु णं सुरवरहो तं दिट्ठ तवोवणु तावसह अब्भासिय-जोग-पसरिय-जसहं कुस-अंकुस-अक्ख-सुत्त-करहं चलणेक्कंगुट्ठ-चित्त-धरहं दिणयर-कर-पवणाहारियह संजमिय-जूड-जड-धारियह तं चूडालंकिय-विग्गहहं पाइण-कोवीण-परिग्गहहं वर-भिसिय-कमंडल-मंडियह चउवेय-भेय-परिचडियह भुई-भुरुकुंडिय-विग्गहहं सहियग्गि-वाय-सीयायवह गुलियंजण-सिद्धि-परायणहं कंकाल-करोडी-भायणहं
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