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एगुणवीसमो संधि पंडव दड्ढा जउ-भवणे गय उच्छलिय वत्त चउपाबीहिं । विरुवउ किउ दुज्जोहणेण धिद्विक्कारिउ राय-सहासेहिं ॥१॥
[१] संपत्त वत्त दुज्जोहणहो कण्णहो सउणिहे दूसासणहो धयरहु कवडु दुक्खेहि हउ हा अज्जु पंडु महु सग्गु गउ । गंधारिए किउ वद्धावणउं हा हूसि माए गउ कलहणउ गंगेय-विउर-किव मुच्छ गय कह कह-व समुट्ठिय सोय-हय ४ दोणहो अहिछत्ते वसंताहो गय दिवहा कइ-वि स्वंताहो वलएवहो लंगल-पहरणहो संपत्त वत्त णारायणहो मच्छरु उप्पण्णु दसारुहहं णाणाविह-गहिय-महाउहहं किउ मेलउ जायव-साहणहो। किर उप्परि जंति सुयोधगहो ८
घत्ता ताम णिवारिय दूवरण किं कउरवहं जाहु ओखंधे । अच्छइ रण-पिडु मंडियउ तुम्हहं रण-पिडु सहु जरसंधे ॥९
[२] तहिं काले पुरोयण-पलय-कर जउ-भवण-विणासणु णर-पवरु पंच वि वहमाणु एधाइयउ तं कउसिय-णयरु पराइयउ जहिं णिवसइ कण्णु णराहिवइ महएवि पहायरि हंस-गइ तं विहि-मि कुसुम-कोमल दुहिय छण-चंद-रुद-सुंदर-मुहिय सा पंडव-राएं अहिमुहेण णं उरसि विद्ध कुसुमाउहेण परिचिंतइ दंसणु मग्गइ-वि णीससइ पेम-जरु लग्गइ-वि संतप्पइ किंचि ण रुच्चइ वि अणवज्जए लज्जए सुच्चइ वि उम्माय-दवग्गि झुलुक्कइ-वि जीवय-संदेहहो ढुक्कइ.वि
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