________________
अट्ठारहमो संधि
णिग्गंतहो ताम विओयरहो ओवत्तण- सील समावय
णिग्गउ भीमसेणु जउ - भवणहो णं केसरि-किसोरु गिरि-कुहरहो जाव जगेरिहे वइ आवइ सासण देवय जइ जिण - सासणे जइ परमेट्ठि सच्च गुरु पंच-वि जइ सच्चाउ सा कोंति महासइ लक्ख हणंतु हणंतु महाइउ जउ-मंदिरे ण मंतु मेसासणु
तो भी वलिवि णिहालियउ कुरु - संदहं उप्पर पज्जलिउ
सरहसु मिलिउ जुहिट्ठिल- रायहो मिलिउ किरीडि पुरोहिय - डाह हो मिलिय पउल - सहएव सहोयर तेहि-मि दिनु विओयरु एंतउ णासहु ताम महंती आवइ दुच्चरियहो पर चोरिय- दव्वहो पिहि णर- जमल- जुहिट्ठिल- रायहं
[ १५ ]
घत्ता
लक्ख ण ढुक्कइ संमुहिय । कवण ण होइ परम्मुहिय ॥
14.9a विओयरई 9c समावहइय
Jain Education International
णं आसण्ण-भब्वु भव-गमणहो णं वण-हत्थि महातरुणियरहो काई विओयरु मज्झे चिरावइ तो म मरउ महु पुत्त हुयासणे जइ णक्खत्तई चंदाइच्च-वि तो जीवंतु पुत्तु दीसेसइ ताम सुरंगहे वारु परायउ णिग्गउ णं विवरेण हुवासणु
घत्ता
हुयवहु जाला - भीसणउ । णावइ मच्छरु अप्पणउ ॥
[१६]
घत्ता
णिय-खंधे चडाविवि णिय जणणि गउ भीमु घणंजय - धम्मसुय
णं ववसाउ पुण्ण-संघायहो जउणा - वाहु व गंगा- वाहहो णं पुरुरवो णमिवणमीसर णाई महाभय- पुट्टलु दें तउ जाम पुरोयणु सण्ण न पावइ होइ चित्तु णासेवए सबहो मिलिउ भीमु णिय- भाइ-सहायहं
४३
इय रिट्ठमिचरिए धवलइयासिय सयंभुव-कए अष्टादशोऽध्यायः ॥ १८॥
जमल ठवेपणु ऊरुएहि । वे वि वि सयंभुवेहिं ॥
For Private & Personal Use Only
४
८
४
८
www.jainelibrary.org