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अट्ठारहमो संधि
जो जंतु णिहालइ जिण-वयणु सो गरु परिसक्कइ जहिं जे जहिं
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फग्गुण - मासो अट्टम - वासरे
पासेहि भामरि देवि ति-वारउ
जय देवाहिदेव जय - णिम्मल जय सोलह - कसाय-भड -भंजण तु वभाणु विट्टु सिउ संकरु तुहुं कल्लाणु णाणु तुहुं मंगलु तुहुं संसार-समुद्दुत्तारणु तुहुं वंदिज्जहि सुर- संधाएं
अट्ठमउ चंदु रविवारु हउ सवइ-भि सु-मंगल-गाराई
णंदीसरु करेवि णीसरियई जणु पलट्टिउ कह व किलेसे ह सासण देवय एम करिज्जहि थोवंतरे दक्खविय - पवंचउ ओसारएण जुहिट्टिल वुच्चइ कुरुव कुमार विसम-संसग्गिहि अ-विवर-भवणे ण पई अच्छेवर रणिहि पहरउ देंतु सहोयर
घत्ता
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घत्ता
सव्व-उ
व-जीव - जीवावणउं ।
तर्हि जे तर्हि जे वद्धावणउं ॥ १०
रोहिणि- रिक्खे पढम-णंदीसरे पुणु थु थोत्तेर्हि संति - भडारउ जय णिद्दोस पयासिय- केवल परम परंपर सुहुम णिरिंजण तुहु सिद्धंतु मंतु तुहुं अक्खरु तुहुं छज्जीव-णिकाय-सु- वच्छलु तुहुं जे मोक्खु तुहुं मोक्खहो कारण अहवइ केत्तिएण थुइ-वाएं
[ ८ ]
विट्ठि सणिच्छरु दडूढ दिन । पई चितंतहं परम जिण ॥
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पंडव कोंति णवर उच्चरियई धाहाविउ भविएहिं असेसेहि रज्जु पंडु-णंदणहुं जे देज्जहिं विउरु पवच्चिर अम्मणु अंचउ रायणीइ ण कयाइ विमुच्चइ रक्खज्जहि अप्पाणु विसग्गिर्हि दिवे दिवे वण- कीलए गच्छेवउ एउ करेज्जहिं णर-परमेसर
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