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वारुणई महाघण- दावणाई णिम्मिय अवराइ-मि आउहाई गय हत्थु समुट्टिउ भीमसेणु थिउ सघणु घणंजउ गहिय-वाणु किउ विउरु दोणु गंगेउ तित्थु
तहि अवसरे फुरंत चल-विज्जुलु णं जुज्झहे वरि वद्धउ आउसु
तो भइ दोणु किं कालु णेहि जइ हउं गुरु तुहुं महु सीसु वुत्तु दुद्धर वर-वइरि-धुरंजण हक्कारिय भायर कहिउ कज्जु थिय पंच- वि पंचहि रहवरेहिं हेलए जे धरिज्जइ जण्णसेणु सहसत्ति करेपिणु संधि - कज्जु अहिछत णिरूवि गुरुहे थाणु
पावणाई मंच - उद्दावणाई दक्खवियई दाइहिं संमुहाई णं तुलियालाणु महा- करेणु सहएउ णउलु राएं समाणु अज्जु जे कण्णज्जुणु होउ एत्थु
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धत्ता
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गय णिव णिय- घराई वरिसियई पाणियाई । गाइ पओहरावली - संपराणियाई ॥
धारा-सर-थोर - थंभाउलु । विणिवारंतु पत्तु णं पाउसु ॥ १०
ओए-वि अवर- विवद्धिय गउरख अवरुप्परु संभासु ण गच्छिय
रिट्टणेमिचरिउ
पडिवण्णउं अज्जुण अज्जु देहि तो द्रुमयहो उप्पर करहि चित्तु पडवण्णु असेसु घणंजएण जाएवउं दुमयहो उवरि अज्जु संपाइय कहि-मि वासरे हिं जिह वारि- णिवंधणे वर - करेणु तिहि अद्धोद्धिए दिष्णु रज्जु गर गयउरु णरु भाइहिं समाणु
धत्ता
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एक्कर्हि पुरवरे पंडव - कउरव । णं गुण-दोस मिलेप्पणु अच्छिय ॥ १०
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