SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ वारुणई महाघण- दावणाई णिम्मिय अवराइ-मि आउहाई गय हत्थु समुट्टिउ भीमसेणु थिउ सघणु घणंजउ गहिय-वाणु किउ विउरु दोणु गंगेउ तित्थु तहि अवसरे फुरंत चल-विज्जुलु णं जुज्झहे वरि वद्धउ आउसु तो भइ दोणु किं कालु णेहि जइ हउं गुरु तुहुं महु सीसु वुत्तु दुद्धर वर-वइरि-धुरंजण हक्कारिय भायर कहिउ कज्जु थिय पंच- वि पंचहि रहवरेहिं हेलए जे धरिज्जइ जण्णसेणु सहसत्ति करेपिणु संधि - कज्जु अहिछत णिरूवि गुरुहे थाणु पावणाई मंच - उद्दावणाई दक्खवियई दाइहिं संमुहाई णं तुलियालाणु महा- करेणु सहएउ णउलु राएं समाणु अज्जु जे कण्णज्जुणु होउ एत्थु Jain Education International धत्ता [ ११ ] गय णिव णिय- घराई वरिसियई पाणियाई । गाइ पओहरावली - संपराणियाई ॥ धारा-सर-थोर - थंभाउलु । विणिवारंतु पत्तु णं पाउसु ॥ १० ओए-वि अवर- विवद्धिय गउरख अवरुप्परु संभासु ण गच्छिय रिट्टणेमिचरिउ पडिवण्णउं अज्जुण अज्जु देहि तो द्रुमयहो उप्पर करहि चित्तु पडवण्णु असेसु घणंजएण जाएवउं दुमयहो उवरि अज्जु संपाइय कहि-मि वासरे हिं जिह वारि- णिवंधणे वर - करेणु तिहि अद्धोद्धिए दिष्णु रज्जु गर गयउरु णरु भाइहिं समाणु धत्ता For Private & Personal Use Only ४ ८ एक्कर्हि पुरवरे पंडव - कउरव । णं गुण-दोस मिलेप्पणु अच्छिय ॥ १० www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy