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सत्तरहमो संधि
घत्ता
आयहिं एत्तिएहि उवयारेहिं जिम गुरु-सीसहो सीसें छिपणे
णिरिणु होमि पर विहिं जि पयारेहि । जिम णिय-सिरेण रणंगणे दिण्णे ॥ १०
[९]
तहिं अवसरि पराइओ णिय-चमू-सहाओ।
चंपापुरवराहिओ णाई सूरराओ ॥ एक्केक्कहिं रहवर-गयवरेहिं तिहिं तुरयहिं पंचहिं-णरवरेहि संभवइ पत्ति तिहि तेहिं सेण सेणामुहु सेणा-ति-उणणेण गणु सेणामुहेण तिहत्तगेण चमु-साहणु होइ गणत्तएण पंचुत्तर-चउ-सय तहिं णराहं तेयाल विणि सय हयवराह एक्कासी रहवर चल-रहंग एक्कासी पवर महा-मयंग एत्तिएण वलेण तुरंतु आउ जय-कारिसु सरहसु कुरुव-राउ कण्णेण्ण वि किउ जयकारु तासु पेक्खंतहो पंडव-साहणासु तो भीमें हसिउ सढत्तणेण गलगज्जहि एण पहुत्तणेण
धत्ता
पभणइ दोणु सरासण-हत्थे जं विण्णाणु पयासिउ पत्थें । तं जइ णिरवसेसु दरिसावहि तो धाणुहिय-लीह परिपावहि ॥ १०
[१०] गुरु-वयणेण तेण सहसत्ति अंगराओ ।
णई धाइयउ णव-धणो स-सर-धणु-सहाओ ॥ अवरोप्परु वढिय मच्छराहं पेक्खंतहं पंडव-कुरुवराह दुद्दम-दणु-देह-वियारणाई दरिसियई अणेयई पहरणाई वामोहण-थंभण-तासणाई ___ अग्गेयई अग्गि व भासणाई ४
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