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सत्तरहमो संधि
वलु वुझउ जुज्झउ मई समाणु पेच्छउ सुर-सत्थु अपेच्छमाणु सरु थरहरंतु वच्छयले देमि विरसंतहो जीविउ अज्जु लेमि
धत्ता
तं सुणेवि वयणु दुज्जोहणु हरिसिउ कलह-केलि-कलि-रोहणु । ओरे आउ मित्त दे साइउ अज्जु मणोज्जु [चोज्जु] आसाइउ ॥ ११
[६] जंपइ सूर-णंदणो एत्थहो ण जामि।
जाम ण णिहउ अज्जुणो ताम तुहुँ ण सामि ॥ कुरु-णाहु णिवारइ चारु-चित्त करे रज्जु महारउ ताम मित्त पच्छइ जुझेसहो सहुं णरेण रह-तुरय-महागय-सम-हरेण धरिओ-वि ण थक्कइ वल-महंतु हउँ कण्णु किरीडिहे कुल-कयंतु तं वयणु सुणेवि गंगेय-दोण किवि-विउर णराहिव-भग्ग-धोण ते मिलिय चयारि वि पंडवाहं दोणायणु थिउ वले कउरवाह वे-पक्खीहूयउ सयलु रंगु किवि-कोतिहिं गरुयउ माण-भंगु पारास वि विउरहो तणिय जाय सवि पंडव-जणणिहिं पासु आय ८ तो णरेण णिवारिउ कुरुव-राउ मुए मं धरि फेडमि सुहङ-वाउ
पत्ता
पुणु पुणु स-धणु धणंजउ घोसइ तुम्ह वि अम्ह वि समरु समच्छरु
वहु-कालंतरेण जे होसइ । तं एवहि जे होउ एकंतर ॥ १०
तो ते किव-विओयरा अंतरे पइट्ठा ।
मरु पइसारिओ-सि रे केण पहिय धिट्टा ॥ 5. 11c. ओरें.
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