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रिटणेमिचपिठ [४] णह-लंगूल-केसरी केसरी व कुद्धा ।
केम वि आसथामेण थामे णं णिरुद्धा ॥ थिउ अंतराले गुरु-तणउ ताहं सामरिस-भीम-दुज्जोहणाहं रेहइ थिर-थोर-पलंव-वाहु णमि-विणमि-मझे णं रिसहणाहु
ओसारिय वे-वि गयाउहेस णं खीण-कसाएं राय-दोस पइसारिउ अज्जुणु रहवरत्थु अखलिय-पयाउ रण-भर-समत्थु पहिलारउ दोगहो किउ पणामु पुणु लइउ सरासणु अतुल-थामु अग्गेय-सरहिं णिम्मविय अग्नि धय-चामर-छत्तेहिं जाव लग्गिा उल्हविय ते-वि वारुण-सरेहिं णव-जलहरहिं व धाराहरेहि णिट्टविय ते-वि वर-वायवेहि सिल-पव्वय-पाहण-पायवेहि
घत्ता
णउ संधाणु थाणु णिज्झाइउ णवर सरेहिं दियंतर छाइड । भाइहि पुलउ परिटिउ उच्चउ कुरु-मुहे दिण्णु णाई मसि-कुच्चउ ॥१०
वट्टइ जाम जणवए अज्जुणाणुराओ ।
ताम तहिं जि अवसरे उट्टिओ णिणाओ ॥ णं गज्जिउ णहे णव-जलहरेण णं गज्जिउ पाउसे सायरेण णं गज्जिउ वणे पंचाणणेण णं गज्जिउ पलए जमाणणेण जणु धाइउ दूसहु सर्दु जेत्थु भडु एक्कु णिहालिउ ताम तेत्थु आवद्ध-कवउ धाणुहिय-वेसु मणि-कुंडल-मंडिय-गंडएसु तहो रसइ सरासणु करे रउद्दु णं जुय-खए खुहिउ महा-समुदु संपाइउ जहिं सो कुरुव-राउ णं जीविय-आसालंभु आउ कहिं अजुणु दुजणु दोस-लइक अणिमित्त-णिवद्भ-महंत-वइल
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