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________________ सोलहमो संधि घत्ता भणइ दोणु गंगेव किव रंगे पवेसु समाढनहु धयरट्ठ विउर कि सेरा । णिप्पण्ण सीस महु केरा ॥ [१२] ४ तं णिसुणेवि तोसिय-मणेण कासिराय-सुय-णंदणेण । उब्भिय मंच सुवण्णमय अमर-विमाण-गणोवमय ॥ आरूढ पियामह-पमुह-राय धयरट्ठ-विउर-णरवर-सहाय विहुबलि-भूरीसव-सोमयत्त अवर वि पहु रहसुच्छलिय-गत्त गंधारि-कोति-किवि-दूसलाउ णिय-णिय-सुय-दरिसण-वच्छलाउ धणु-हत्थ किवासत्थाम-दोण गय रंगभूमि संजमिय-तोण कुरु-पंडव-वीर महाणुभाव परियाणिय-सयल-कला-कलाव स-पसाहण विरइय-सेहरोह विप्फुरिय-महामणि-दिण्ण-सोह सोलह-आहरण-विहूसियंग ण आय मिलेप्पिणु बहु अणंग कु-वि ससरु सरासणु करे करेइ कु-वि खग्गु गयासणि को-वि लेइ केण-वि रवि-भासुरु धरिउ चक्कु मुक्क-मलु कमलु करे णाई थक्कु ८ घत्ता तूर-सहासइं आहयई रंग-भूमि पइसरिय भड किउ कलयलु सुरेहिं पयंडेहिं । वगंत-सयंभुव-दंडेहिं ॥ ११ इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुव-कए षोडशोऽध्यायः ॥ १६ 11. 9b. सोरा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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