________________
सोलहमो संधि
२५ पडिवण्णु ण कुरुवें णिग्गुणेण लइ सीसु वि वुच्चइ अज्जुणेण तक्कालावहि दोणायरिउ पंडव-गुण-पक्खवाय-भरिउ परितुट्टे पत्थहो दिण्णु वरु मेल्ले प्पिणु महु गुरु परसु-धरु मई सरिसु होउ संधाणु हिउ तो तक्खणि तोस-गयारुहिउ ८ सव्वंगु णविउ णरु णिय-गुरुहे गिरि-सिहरु व पडिउ चित्तु कुरुहे
पत्ता
अण्णहिं दिवसे असेस-वल तुरई देवि समुच्चलिय
धय-छत्त-खंड-किय-मंडव। वण-कीलइ कउरव-पंडव ॥
. १०
[९]
ताम दिठु विहलंघलउ रुहिरारुणिय-महीयलउ ।
दूर-वरुज्झिय-काणणउ मंडलु सर-भरियाणणउ ॥ जं सारमेउ लक्खिउ स-सल्ल उप्पण्णु णरिंदहो कोउहल्लु थोवंतर परिसक्कंति जाम वणे वाहु विहाविउ एक्कु ताम धणु-वाण-पाणि विणिवद्ध-तोणु वसुहामउ आमउ करेवि दोणु। जय-कारेवि घरेवि चलंत-चक्खु सर संघइ विंधइ वद्ध-लक्खु कुरुवेहिं परिपुच्छिउ कहिउ सव्वु णामें वाहु हउं एकलव्वु कुरु-गुरु पसण्णु विवरोक्खए जि उप्पाइउ तेण समोक्खए जि दिवे दिवे वंदमि चरणारविंदु तो पत्थि पभणि दियवरिंदु महु पासि एहु वड्डिमउ ताय किय होसइ तेरी अलिय वाय
४
घत्ता
तं णिसुणेवि दोणायरिउ पत्थिउ तेण वि दिण्णु तहो
गउ तासु पासे मण-दुट्ठउ । वामेयरु कर-अंगुट्ठउ ॥
१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org