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रिट्टणेमिचरिउ
घत्ता
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सयल समप्पिय आयरेण गंधारिए पुत्त गंगेएं । गिभि दिवायर-किरण जह पयवंतु ताय ताय(?) तव-तेएं ॥
[७] कुरुव.सएणालंकरिउ सोह देइ दोणायरिउ ।
भरह-णराहिव-पमुहएण रिसहु जेम सहुँ सुय-सएण ॥ कोंती-तणय वि तहो जे समप्पिय कउरव जेहिं असेस-वि चप्पिय अण्णहिं दिणि संतणएं वुच्चइ भणमि दोण जइ तुम्हहं रुच्चइ अत्थि एत्थु तयत्थहो गंदणु अंधतमउ जण-णयणाणंदणु गउतमु तासु पुत्तु तहो गेहिणि जालवइ व जालवइ सणेहिणि तहिं णरु णारि विण्णि उप्पण्णइं वहु-विण्णाण-रूव-संपण्णई किउ महंतु किवि तहो लहुयारी तुम्हहं जोग्ग मणोहर-गारी तं पडिवण्णु णाय-धणुवेएं सहसा परिणाविउ गंगेएं दोणहो जाउ पुत्तु दोणायणु आसत्थामु वइरि-विणिवायणु
घत्ता भग्गव-वंसुज्जोय-करु परिवइढिय भड-अवलेवहो । जाउ महंतु मणोरहिहिं जिह वासुएउ वसुएवहो ॥
[८] पुत्त-महोच्छवे आय कुरु णंद बद्ध पभणंत गुरु । पंडु-सुयाह-मि जाय दिहि जणिय-जहारुह-सीस-विहि ॥ तो भणइ दोण रणे रउरवहो आयण्णहो कउरव-पंडवहो तुम्हेहिं सव्वेहिं णिप्पण्णएहिं घणुवेय-तेय-संपण्णएहिं जभणमि करेवउ तं वयणु णउ मग्गमि धणु कंचणु रयणु
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