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रिद्वगेमिचरित
घत्ता
वारह सुत्तई सिक्खियइं अट्ठ-कलालंकरियई
करणई बत्तीस पहाणइं। आहुट्ट-घाय-विण्णाण
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णउलें कोंतु णिरिक्खियउ असि सहएवं सिक्खियउ ।
दुद्दम-दणु-दप्प-हरणई अवरेहि-मि अवरई पहरणई।। चावई नर-समहं समप्पियई चउ-विज्जा-थाणई थप्पियई वंभाणि-विज्ज धणु-लट्ठि किय णारायणि पगुण-गुणग्धविय माहेसरि मग्गणे संकमिय वर-मोक्ख-विज सर-मोक्खे थिय जहिं सयलहं कलहं गवेसणइं छट्ठाणई तिण्णि सरासणई तिहिं पूरय-कुंभय-रेयएहिं कडूढण-गुण-मेल्लण-भेयएहिं. दिढ-दिट्टि-मुट्टि-संघाण-सरु हुंकारु सग्ग-मणत्ति-हरु हंतारहं मम्माणहं विहि-मि तं णरहो गुणंतहो भाउहि-मि णवरेक्कु पराइउ कप्पडिउ णं अमर-मंति सग्गहो पडिउ णामेण दोणु घरे किवेण णिउ णिय-सणिणहु अणु आइरिउ किउ
घत्ता अण्णहिं दिवसे कूवे पडिउ कंदुवउ ण कड्ढेवि सक्कइ । सायरु जिह वडवाणलहो कुरुवइ पासेहिं परिसकइ ॥
तहिं अवसरि णिरुवम-चरिउ फल-पुंखोलि-णिरंतरए
उट्ठिउ सई दोणायरिउ । आहउ वाण-परंपरए ॥
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