SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ रिट्ठणेमिचरिउ जगे होसंति अणेय-पयारइं वाहि वइर चोरिय-परयारइं भरियउ अइ-भरियउ जे भरावइ णिद्धणु पिउ जे चवंतु ण भावइ जणण सुएहिं घरहो घल्लेवा देव-भोय गरवइहिं लएवा तवसिहि माढावत्त करेवउं पर-कलत्तु पर-दव्यु हरेवउं८ घत्ता होसइ कलिकाल-पहावेण माणुसु दीण-दयावणउं । दुकाल]त्त दु-सामि दु-भिच्चेहि जिमियहं घरे वद्धावणउं ॥ ९ [१४] अज्झयणई परिहरिएवाई सुद्दिहिं होएवउ राणएहिं वेसत्तणु पिउ कुल-उत्तियह होसंति गाम पील-वहुल रण्णई ववूल-दुम-दूसियई धण्णइं अवदाय-इत्ति-हयई कुरु-जंगलु होसइ मइर-पिउ अवरइ मि असारई जेत्तियई विप्पिहिं करिसणई करवाई चंडालिहिं आगम-जाणएहिं पय-दंडणु खंडणु खत्तियह पिप्पल-विकाय-वाउलि-मुहल खेत्तइ-मि स-सक्कर-मीसियई कुलइ-मि दुच्चरिय-भाव-गयई मंसायरि दाहिण-देसि थिउ उवमा य कहेसहुं केत्तियइं घत्ता दुट्टहिं दुज्जस-मंडवेहिं । रज्जु करेवउ पंडवेहि ॥ कइहि-मि दिवसहं अब्भंतरि कुरुएहिं कुरु-खेत्ति मरेवउ चंपाहिवइ वहेवउ पत्थे अज्जुण-सुउ दूसासण-जाएं सरि-सुउ मरइ सिहंडिहे हत्थे xxx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy