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पंचदहमो संधि
अभंतर गंथ चउद्दह वि तव-वइरि असंजम वारह वि दह वाहिर गंथ लव-विजय भय सत्त छ रस पंचिदियइं
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णिक्किरिय महाभड तेरह वि गुण-थाणाहित्र एयारह बि णव णो-कसाय दुट्ट मय चउ आउ ति सल्लइ कुदियई
धत्ता
तिहुयणु असेसु जगडंतउ एम पत्तु मिच्छत्त-बलु । तो पंडु सेण सण्णञ्झेवि धाइउ णाई समुद्द-जलु ॥ ११
[८] सम्मत्त-गराहिब णीसरिउ विहि गुणेहि ति-गुत्तिहि परियरिउ आराहण चउ-विह पंच वय छक्काल समुट्ठिय सत्त णय . सिद्ध वर गुणट्ट पयत्थ णव दह धम्म सोक्ख-मोक्खाणुभव ' एयारह गुण-थाणावसर
तव वारह तेरह चरिय वर - ४ जो जासु मल्लु सो तहो भिडिउ घोराहउ एम समावडिउ कुरु-णाहें वाहिउ धम्म-रहु तव-णाण-रहंगिहिं सुप्पवहु सारहि परमत्थु परिट्रियउ
परवलु जगणहं अहिट्ठियउ
धत्ता संजम-सण्णाहु पइद्धउ खग्ग-लट्ठि किय जीव-दय । संथार-रंगि जुझंतहो पंडुहे तेरह दिवस गय ॥
[९] पडिवक्खहो माण-मलणु करेवि आराहण जय-बडाय घरेवि कुरु-पंडु-मद्दि विष्णि-वि मुयई हिय-इच्छिउ देव.लोउ गयई उवसोह करेवि णीसारियइं सुरसरिहे तीरि संकारियाई जो जेम कुल-क्कभु को-वि हिउ सो तेमइ लोयाचार किउ जलु दिण्णु असेसेहिं बंधवेहि जउ-संभव कउरव-पंडवेहिं
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