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तव - दंसण - णाण चरितइं आराहण मोक्ख कारणु
चहु मिचउगइ-विद्धंसणहं
उज्जोय उज्जमु णिव्वहणु परमागमे भासिउ जेल उ
सम्मत्त - चरितेहि तं दुविह
दंसणु आराहउ एक्कु छुडु णय-सुद्धि णाणु वय- वेक्कफलु सदिट्टि व अविरय-भाव-गुणु समत्ता जमणाहिवइ
पाणिदिय-संजम - रहियउ उवेदादि करे उ
आराहण वायइ जाम रिसि
तहिं अवसरे पारकर पडिउ मिच्छत्त - जराहि
दुद्दरिसु
वीस व अंतराय पवर अट्ठारह दोस महा - बलिय
सोलह कसाय जग- डमर-कर
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धत्ता
[ ६ ]
रिट्टणेमिचरिउ
आराहेवई अविचलई । सग्ग- मोक्ख विणि-बि फलई ||
चारित - णाण-तव- दंसणहं ।
संसिद्धि - पाहणुण धरणु
आराहण- लक्खणु तेत्तडउ चारिताहिट्टिउ एक्कु त्रिहु णाणु वि आराहि होइ फुडु संजम परिपालणु तत्रहो दलु णाराहउ सत्रहो होइ पुणु सो हंतु करेणु व रेणु धित्रइ
धत्ता
सम्मत्तेण वि पूरण | वउ जेम सिदूरए ॥
[ ७ ]
दरिसाव धम्मो तणिय दिसि रणु पंडुहे घोरु समावडिउ तहो उप्पर आयउ सामरिसु वावीस परीसह तर्हि अवर
सत्तरह मरणाहिव मिलिय पणारह - विह पमाय अवर
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