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________________ १४ तव - दंसण - णाण चरितइं आराहण मोक्ख कारणु चहु मिचउगइ-विद्धंसणहं उज्जोय उज्जमु णिव्वहणु परमागमे भासिउ जेल उ सम्मत्त - चरितेहि तं दुविह दंसणु आराहउ एक्कु छुडु णय-सुद्धि णाणु वय- वेक्कफलु सदिट्टि व अविरय-भाव-गुणु समत्ता जमणाहिवइ पाणिदिय-संजम - रहियउ उवेदादि करे उ आराहण वायइ जाम रिसि तहिं अवसरे पारकर पडिउ मिच्छत्त - जराहि दुद्दरिसु वीस व अंतराय पवर अट्ठारह दोस महा - बलिय सोलह कसाय जग- डमर-कर Jain Education International धत्ता [ ६ ] रिट्टणेमिचरिउ आराहेवई अविचलई । सग्ग- मोक्ख विणि-बि फलई || चारित - णाण-तव- दंसणहं । संसिद्धि - पाहणुण धरणु आराहण- लक्खणु तेत्तडउ चारिताहिट्टिउ एक्कु त्रिहु णाणु वि आराहि होइ फुडु संजम परिपालणु तत्रहो दलु णाराहउ सत्रहो होइ पुणु सो हंतु करेणु व रेणु धित्रइ धत्ता सम्मत्तेण वि पूरण | वउ जेम सिदूरए ॥ [ ७ ] दरिसाव धम्मो तणिय दिसि रणु पंडुहे घोरु समावडिउ तहो उप्पर आयउ सामरिसु वावीस परीसह तर्हि अवर सत्तरह मरणाहिव मिलिय पणारह - विह पमाय अवर For Private & Personal Use Only ४ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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