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पंचदहमो संधि
पंचदहमो संधि पंडुहे सण्णासु करंताहो आउ असेसु वि वंधु-जणु । धयरटु विउरु किउ संतणु दस-दसार वलु महुमहणु ॥
[१] मंडउ किउ जोयण-परिमाणे जिह उप्पण्णे केवल-णाणे णिम्मिउ समवसरणु जग-णाहहो। तिह पंडुहे गिरि-धीर-सणाहहो धय-तोरण-चंदोवा-घंटेहि
वण्ण-विचित्त-णेत्त-पडिवट्टेहि मोत्तियदाम-सरेहिं पमुक्केहि विदुम-पउमराय-झुंवुक्केहिं ४ गायण-वायण-णच्चग-णारहिं णड-कइ-कहय-छत्त-थुइवाएहिं लंविय-मल्लंके को लाजीवेटिं गंध-धूव-चरु-अक्खय-दीवहिं विविह-फलेहि णाणाविह-णामेहि मंदमाल-सरमाला-दामेहि छड-रंगावलि-पुप्फच्चणियहिं काहल-संख-मउंदा-मणियहि झल्लरि-भेरि-भंभ-भंभीसेहि कंसिय-वीणा-वंस-विभीसेहिं
धत्ता
आएहिं अवरेहिं मिलियहि जाय णवल्ली भंगि कवि । अच्छउ इच्छिछ अच्छिवउ पयहो वि लब्भइ यत्ति ण-वि ॥ ९
[२] धम्मेप्परिवटिय-अणुराएं सयलु धि जणु आउच्छिउ राएं अहो गंगेय-विउर-धयरहो अतुल-वलहो पारिपालिय-रट्ठहो तुम्ह जुहिट्ठिलु तिहि णिक्खेवउ जइवि अजोगु तो वि रक्खेवउ कोमपालु पइं परिपालेवउ भीमसंणु सिसु संभालेवउ
14b झंयुकेहि
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