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चउद्दहमो संधि
पभणइ विउरु भडारा-कउरव कुरु-कुलु आयहो पुत्तहो पासिउ । तो वरि णिम्मल-सलिल-तरंगहे तो धयरट्ठ रु? उ मंतमि
सुर सुच्चंति विहंगहं रउरव पेक्खेसहि अइरेण विणासिउ घिप्पउ गपि अलक्खणु गंगहे जं भावइ तं होउ ण घत्तमि
८
धत्ता
ताम कुंति-कुंतीवरह
कुरव-कुरंग-जूह-जम-गोयरु । फ(?प)लउ णाई उप्पणु विओयरु ॥ ९
हिणए
[१२]
जहिं चल-गमणु पवणु खरु भीसणु जहिं डाइणि-वेयाल-सहासई जहि भज्जति रुक्ख दुव्वाएं सिव-सिआल-सउणेहिं ण भक्खिउ मोटियारु णं घडियउ वज्जे एत्तहे दूसांसणु उप्पण्णउ इंद-महोच्छउ जाउ वलुत्तणु(?)
जहिं वाओलिं-धूलि-धण-णीसणु विसमइ-साउहाई सहुआसई तहि घत्ताविउ तव-सुय-ताएं सव्वहुं मारुएण परिरक्खिउ वुच्चइ पवण-पुत्त तें कज्जें कुरुवहं कलहु णाई अवइण्णउ इंद-पुत्तु तें बुच्चइ अज्जुणु
धत्ता
कुंतिहे णंदण तिण्णि जण मदिहे विणि णराहिव-णारिहे । सुय सउ दुज्जोहण-पमुह दूसल एक धीय गंधारिहे ॥ ८
[१३] ते पंडव तहो पंडुहे णंदण ते कउरव कुरु-णयणाणंदण तं कुरु-कुलु जय-लच्छि-णिहालउ तं णिरवज्जु सयल-पय-पालउ सो सविसेसु देसु कुरुजंगलु तं गयउरु धण-कण-जण-मंगलु सा सुरसरि सो सुरसरि-णंदणु जासु सुर वि करंति अहिवंदणु ॥ ४
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