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स्वयंभू ने महाभारत के अत्यंत प्रसिद्ध और मार्मिक स्थलों को ही अपने काव्य में स्थान दिया है । कौरव और पाण्डवों की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए भीष्म की प्रतिज्ञा (संधि १४) का वर्णन बहुत ही प्रभावशाली है । भीष्म के कौमार्य व्रत धारण करने की प्रतिज्ञा से नर, देव गंधर्व सभी हर्षित होते हैं-श्रावक व्रत की स्वयंभू प्रशंसा करते हैं । कुरुकाण्ड में शृङ्गार और वीररस के प्रसंगों का स्वयंभू ने अच्छा वर्णन किया हैं । रति और उत्साह स्वयंभू के दो अत्यंत प्रिय स्थायी भाव हैं । वे कहते हैं अस्थि मल्लु को पेम्महो आयहो । (१४.१५.८)' प्रेम के सामने कौन मल्ल है ?? माद्री और पाण्डु के परस्पर एक दूसरे के प्रति अनुरक्त होने का कवि ने बहुत ही मनोरम वर्णन किया है । स्वयंभू को अति प्रिय नहीं है। कामान्ध पाण्डु हरि युग्म की रतिक्रीडा को सहन नहीं करता स्वयंभू तुरंत पाण्डु को नभोवाणी द्वारा शापित कराते हैं । प्रेम की परिणति कवि शान्त और करुण रस में कराता है । पाण्डु पश्चात्ताप करता, प्राण त्यागता है । माद्री सती हो जाती है । करुण रस का पूर्ण पारेपाक कवि ने बहुत ही व्यंजक शैली में व्यक्त किया है । कुंती का विलाप पतिविहीना नारी का शाश्वत विलाप बन गया है । (संधि १५) । पाण्डवों की शिक्षा, द्रोण का आगमन नाटकीय शैली में प्रस्तुत हुआ है । कौरव-पाण्डव के बालकों की गेंद कुए में चली जाती है । एक अपरिचित ब्राह्मण कहीं से आ पहुँचता है और उनकी गेंद को बाणों की श्रृंखला बनाकर निकाल देता है । इस अद्भुत कर्म करने वाले को भीष्म कौरव बालकों को अस्त्रविद्या सिखाने का भार सौंपते हैं । द्रोणाचार्य अपने शिष्यों में अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ पाते हैं । रंगभूमि में शिष्यों द्वारा अस्त्रशस्त्र कौशल दिखाया जाता है, अर्जुन, कर्ण, दुर्योधन तथा अन्य सभी अपनी अस्त्रविद्या की निपुणता का प्रदर्शन करते हैं । कर्ण का आगमन एक आश्चर्य की बात हुई : उसको देखकर लोगों में कोलाहल मच जाता है। वह अर्जुन को ललकारता हुआ आता है......
____ कहिं अज्जुणु दुज्जणु दो-सलइरु : १७.५.८ दोषों का समूह दुर्जन अर्जुन कहां हैं ? इसी वाक्य को सुनकर दुर्योधन कर्ण का मित्र बन जाता है । स्वयंभू ने प्रसंग को बडे ही कौशल के साथ प्रस्तुत किया है ।
प्रबंध की दृष्टि से कुरुकांड बहुत सुगठित काव्य है । मार्मिक स्थलों को ही कलिने चना है और उनका उचित अनुपात में विस्तार किया है । कर्ण का अपमान होता है और दुर्योधन कर्ण को चंपापुर नगरी का स्वामी बनाकर सम्मानित करता
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