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________________ 37 स्वयंभू की कृति अपूर्ण रह गई थी और उसके यशस्वी पुत्र त्रिभुवन ने पूर्ण किया, किन्तु 'जसकित्ति' ने उसमें शेष अश क्यों जोडे-यह विचारणीय है । यश कीर्ति ने यह भी उल्लेख नहीं किया कि स्वयंभू की कृति अपूर्ण रह गई थी। महान् कवि की कृति में योग देना ही कदाचित् यशःकीर्ति का लक्ष्य रहा होगा । यश-कीर्ति (जसकित्ति) नाम के एकाधिक अपभ्रश के कवि हुए हैं । तेरह सन्धियों में समाप्त एक 'हरिवंशपुराण' के रचयिता एक यशःकीर्ति संभवतः विक्रम की सोलहवीं शती में गुजरात प्रान्त में हुए थे । दूसरे यश कीर्ति 'चंदप्पहचरिउ' नामक अपभ्रंश कृति के रचयिता थे । अपभ्रंश कवि रयधू (सोलहवीं शती में विद्यमान) के गुरु यश कार्ति ने स्वयंभू की कृति 'रिट्टणेमिचरिउ' में दस संधियाँ (१०३ से ११२) जोड़ी हैं । ये यश:कीति बड़े प्रभावशाली थे । वे भट्टारकीय गद्दी के उत्तराधिकारी थे । उनका समय विक्रमसंवत् को पन्द्रहवीं शती का उत्तरार्द्ध तथा सोलाहवों शती के पूर्वार्द्ध के बीच में माना जाता है ।। त्रिभुवन स्वयंभू और यश कीर्ति ने जो अंश 'रिटणेमिचरिउ' में जोड़े हैं, इससे स्पष्ट है कि वे प्रक्षिप्त हैं । स्वयंभू के जीवन और व्यक्तित्व के विषय में जानने के लिए वे विश्वसनीय सामग्री प्रस्तुत नहीं करते । स्वयंभू बहुत हो विनयशील थे और उनके आश्रयदाताओं ने उनके साथ जो उपकार किया उसे उन्होंने बार बार स्वीकार किया है ।२ 'रिट्ठणेमिचरिउ' के कुरुकांड में उन्नीस संधियाँ (१४ से ३२ तक) हैं । इन संधियों को कथावस्तु का आधार महाभारत के आदिपर्व, वनपर्व, तथा विराटपर्व के कुछ प्रसंग हैं । कांड के आरंभ में चार प्राकृत गाथाएँ उद्धृत की गई हैं, जो स्वयंभू कृत नहीं है, इनमें से एक गाथा 'जे समुहागय... 'हाल को' गाथासप्तशती' (सं. २१०) में मिलती है । कृति की सभी हस्तलिखित प्रतियों में वे गाथाएँ मिलती है, संभव है स्वयंभू ने इनका चयन स्वय हो किया होगा । पांडु और माद्री के उद्दाम प्रेम के प्रसंग का पूर्वाभास देने के लिए मानो स्वयंभू ने उन्हें चुना हो । १. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य, हिन्दी परिषद्, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद, १९६४ ई., पृ. १५३-१५४ । २. प्रत्येक संधि के अंत में कवि ने आश्रयदाता का नामोल्लेख किया है। 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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