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________________ B 32 की है । जहाँ स्वयंभू अपनी कृतियों के आरंभ में विनयपूर्वक कहते है कि वे व्याकरणादि कुछ नहीं जानते वहाँ त्रिभुवन कहता है कि व्याकरण में वह दृढ-कंध वृषभ के समान है, आगम अंगों का ज्ञाता है, काव्यभार वहन करने में समर्थ है, स्वयंभू के इस छोटे पुत्रने कहा है कि वह मां के गर्भ में ही सब शास्त्र सुन चुका था : सव्वे वि सुआ पंजर-सुअव्व पढिक्खराइँ सिक्खंति । कइराइस्स सुओ पुण सुइव्व । सुइ गम्भ-संभू ओ ।। प. च. अंतिम प्रशति. 'सभी पुत्र (शुक्याःसुत) पिंजड़े में बन्द शुक के समान पढ़कर (स्टकर) अक्षर सीखते हैं किन्तु कविराज का पुत्र शुक (शुकदेव के समान) के समान गर्भ में पढ़कर उत्पन्न हुमा है । त्रिभुवन ने जितनी विस्तृत 'सूचनाएँ' 'पउमचरिउ' की पुष्पिकाओं और प्रशस्तियों में दी हैं 'रिटणेमिचरिउ' की पुष्पिक ओं में नहीं दी हैं । संधि १०० की पुष्पिका, उदाहरण के रूप में देख सकते हैं : ___ इय रिठ्ठोमिचरिए धवलइयासिय सयंभुवकए उवरिए तिहुयण सयंभु महाकई समाणिए ............सउम सग्गो ।' ___ व्यरिए' शब्द से प्रतीत होता है कि स्वयंभू अपनी कृति को अधूरा छोड़ गए थे, ऐसा त्रिभुवन को प्रतीत हुआ होगा और इसी लिए उसने 'ऊवरिए' 'अधिक, शेष, वचा हुआ' शब्द का प्रयोग किया है। अपने पिता स्वयंभू के सम्बन्ध में जिन बिरुों का उसने प्रयोग किया है वे बिल्कुल उचित हैं : महाकवि, कविचक्रवर्ती, छन्दचूदामणि इत्यादि। स्वयंभू ने अपने देश, कोल, कुल के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया है। पुष्पदन्त ने 'महापुराण' में स्वयंभू का उल्लेख किया है, उसी प्रसंग में संस्कृत टिपणीकार ने सूचना दी है कि वे जैन यापनीय शाखा से संबंधित थे । त्रिभुवन स्वयंभू का लघुपुत्र था । उमने भी जो सूचनाएँ दी हैं उससे स्वयंभू के जीवन पर कोई विशेष प्रकाश नहीं पडता । उनकी रचनाओं के आधार पर इतना ही कहा जा सकता है कि वे बहुश्रुत थे और विचारों से अत्यंत उदार और संभवतः उत्तरी भारत के पश्चिमी प्रदेश के थे। ‘पउमचरिउ' की संधि ४२ की पुष्पिका से ज्ञात होता है कि स्वयंभू की दो पलियाँ थी-आदित्यदेवी तथा आदित्याम्बा जिन्होंने प्रतिलिपि करने में सहायता की थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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