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29 3 इन्देण समप्पिउ वायरणु, रसु भरहें वासे वित्थरणु । पिंगलेण छंद-पप-पत्थारु, भंमह-दंडिणि हिं अलंकार । वाणेण समपिघउ घणवणउ, त' अक्खडंवरु अप्पणउ । सिरिहरिसें णिय णिउ-तणउ', अवरे हमि कइहि कइत्तणउ । छड्डुणि-दुवई-धुवइहिं जडिय, च उमुहेण समप्पिय पद्धडिया
-रि. णे. च. संधि १. क. २. जि. पूर्व सूरियों का स्वयंभू ने स्मरण किया है, उनमें रविषेणाचार्य सब से परवर्ती हैं । स्वयंभू रविषेश के सबसे अधिक ऋणी हैं जो उनकी इस उक्त से प्रकट होता है । 'पुणु रविसेणायग्यि-पसाएँ, बुद्धिए अवगाहिय वइगएँ' । प. च. १. २. 'पुनः कविराज रविषेणा वार्य की कृपा से बुद्धि से अवगाहन करके.........' रविषणाचार्य की कृति 'पद्मचरित' का स्वयंभू ने अच्छी तरह अध्ययन किया था। 'पद्मचरित' का रचनाकाल विद्वानों ने सन् ६७७-६७८ ई. के बीच माना है । स्ययंभू के समय की प्राचीनतम कालसोमा ६७८ ई. निश्चितरूप से मानी जा सकती है । स्वयंभू के परवर्ती जिन कवियों ने स्वयंभू या उनकी कृतियों का उल्लेख किया है उनमें सबसे प्राचीन पुष्पदन्त हैं । उन्होंने अपने ‘महापुराण' में अनेक महाकवियों के साथ स्वयंभू का दो बार उल्लेख किया है ।
(१) कलंक-कविल--कणयर-मयाइ दिय-सुगम-पुरंदर-णयसयाइ ।
दत्तिल-विवाहिलुद्धारियाइ ण णायइ भ-ह-वियारियाई । णउ पीयइ पायं जल-जलाई अइहाम-पुराण्ई णिम्मलाइ । भााहिउ भारवि भासु वासु काहलु कोमलविरु कालियासु । चउमूहु सयभु सिरिरिमु दोणु जालोइउ कई ईसाणु बाणु ।
-महापुराण, संधि १, क. ९. ‘अकलंक(न्यायकुमुद चन्द्रोदय' के रचयिता)कपिल (सांख्यदर्शन के रचयिता), कणाद (वैशेषिक दर्शनकार, के मतों का, द्विज (वेद के पाठक), सौगत (बौद्ध), पुरंदर (चाक मत के ग्रन्थकार), नय (युक्ति-अभिप्राय), दत्तिल-विसाहिलकृत (संगीत शास्त्र), न जाना-भरतमुनिकृत नाटयशास्त्र को, न पिया पातंजल (पाणिनि-याकरण के महाभाष्य) जल को, निर्मल कथा, पुगण को नहीं (जाना), अर्थगौरवपूर्ण भारवि (भाखेर. र्थगौरव), भास, व्यास, कोहल (कोई कवि), कोमल गिरावाले कालिदासः चतुर्मुख, स्वयंभू , श्रीहर्ष, द्रोण, कवि ईशाण (बाण ने उल्लेख किया है), बाण को नहीं देखा।'
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