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रिट्टणेमिचरित
घत्ता
जो बहु-लद्ध-वरु खडो-डाह-डामश्-कीरउ । कम्महं विहि-वसेण सो जायहं मलइ सरीरउ ॥
[११] जमलासवाल-घणवाल जाहिं सइलिंधि हउ-मि सुहु कवणु तहिं महि-मंडले सयले गविट्ठाई केम-वि खल दइछे दिट्ठाई देसें देसतरु भमियाई वणे वारह वरिसइं गमिग्राई अहिएहिं मासेहिं एयारहे हिं अवरेहिं वासर-पण्णारहेहिं तो-वि दुक्ख-किलेसहो छेउ ण-त्रि वरि मरणु ण जीविए सहल क-वि तो भणः भीमु अपमेय-वलु थोरं सु-जलोल्लिय-मुह-कमलु किं रुवहि माए लुहि-लोयणइं गय-दुक्ख-किलेसहो भायगई संसार-धम्मु ण णिरिक्खियड़ सुहि केत्तिउ केत्तिउ दुविखयर
घत्ता देइ दुइ वि फल पंचालि पुराइय-रुक्खु । जहे णिय रावणेण किं सीयहे थोडउं दुक्खु ॥
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अइकंत-दिवसे अ-विणीयएण परिभावय माए जं कीयएण तं तहिं जे काले किर णिवमि पाहुणउ क्यंतही पट्टवमि हउं ताम गरिदे सप्णियउ गिय-रोसु तेण अवाणियउ जइ कह-वि चुक्कु अज्जोणियहे मारमि रयणिहे कल्लोणियहे छुडु तेण समउ संकेउ करे पइसारहि णच्चण-साल-घरे जहिं तुंगिहे को-वि ण संचरइ तहिं कल्लए कीयउ महु मरइ तं णिसुणेवि पुलउब्भिाण-भुय गय णियय-णिहेलणु दुमय-सुय थिउ ताम भीमु परियलिय णिसि अरु गेणालंकिय पुव्व दिसि 10.9d. भा. जो जायह; ज. सो र यह. 11.2b. ज. किंम्हि जि.
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