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अट्ठावीसमो संधि हिंडेवि वण-गहणे पडिवक्ख-मडप्फर-साडहो। जण्णसेण-सहिय गय पंडव णयरु विराडहो ॥
[१] तो भणइ जुहिट्ठिलु भायर हुँ सभाय-णेह-गुण-सायरहुं वहु-दुक्ख-किलेसुप्पायणई वणे गमियई वारह हायणइं. अज्ज भमरेहि-व कमल-सरे अच्छेवउं बरिसु विराङ-घरे अच्चंत-महंत-चिंत तहि-मि पहु-सेव सु-दुक्कर सव्वह-मि आयइं लहुयाई ण कारणई णिट्ठीवण-पाय-पसारणइं कर-मोडण-जिंभा-मेल्लणइं कह कह ण(१व) परासण-पेल्लणइं अंतेउर-रूव-णिहालणई उवहसियई हत्थुप्फालणई आयई सव्वई वंचेवाइ इंदियई पंच खंचेवाई
घत्ता बड्डी चिंत महु जो जोगि-जणहो वि अगम्मु । किंह तुम्हारिसेहिं सो सेवउ सेवा-धम्मु ||
[२] जं जाणहो तं चितवहो लहु णिय-णिय-विण्णाणइं कहहो महु को कवणु करेसई रूउ तहिं अच्छेसहो पुरे पच्छण्ण जहिं हउं होमि पुरोहिउ सासणिउ णामेण कंकु अग्गासणिउ जूबारिउ जाणमि जूत्र-विहि तिह रमणे तासु जिह होइ दिहि तो वग-हिडिव-जम-गोयरहो वयगुग्गय वाय विओयरहो भुक्खालउ भोयण-वुझणउ जो जुज्झइ तें सहुँ जुझणउ वल्लव अहिहाणु अणालसिउ दव्वीहरु होमि महाणसिउ
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