SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ अज्जुणु विण्णवइ हउं वायरिउ घत्ता मणहरउ लडह-लायण्णउ | णच्चामि णरवइ - कण्णउ ॥ णामेग विहंदल दुल्ललिय करे वलयई कण्णेहिं कुंडलई jrat aण पहरिय णच्चेवर सई द्वायरिंउ गाएवए किण्णरु किंपुरिसु तर्हि अवसरे जमल-जे चवड् जे णिरु विसम-सील दप्पुच्दुर ता मालइ - माला- ललिय-भुय जामि विष्णाणु अमुत्तमउं किंकरि कल - कोइल - वाणियहे तो एव परोपरु संगयई समि दीसइ ताम स- कोडरिय सग्गह स-भूव स भुवंगमिय कहिँ जंवय - णिवह भयंकरिय दुदम-दणु-देह - वियारणई Jain Education International घत्ता प्रभणइ जोइसिउ हजं गोउलु णाह णिहालमि । गो-रस-रिद्धि-करु घण-पालु होवि धणु वा ॥ [ ३ ] परिहसमि कंवल कंचुलिय रिट्टणेमिचरिउ पणं चंद- दिवायर-मंडलई जा कसण-भुवंगिहे अणुहरिय अवरेहि- मिं गुणेहिं अलंकारिउ वाएवए को-वि ण मई: सरिसु उ होमि महंतु महासवइ ते-वि करेमि तुरंगम- पदर [ ४ ] सम्भावें पभणइ दुमय- सुय सयलिंधि भडारा होमि हउं कमलच्छिते मच्छो राणियहे पुरवर - सीमंतरू ववगयङ्क: गिग्गय-वहु-दल बहु-संगस्थि समय स-सूल स-विहंगमिय स- मसाण जमेण वि परिहरिय तर्हि उलें गिहियई पहरणई For Private & Personal Use Only ८ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy