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रिट्ठणेमिचरिउ
घत्ता
ण र मेल्लाविय दुमय-सुय णउ भारहु समरे समाणियउ । कुरु-बल-भायर-किंकरह सयलहं ण कुलस्व उ आणियउ ॥ १.
[१७] तो एम भणेप्पिणु धम्म-पुत्तु । णिय-भायर-दुह-संजोय-जुत्त मुच्छा-विहलंघलु पडिउ केम पंचमउ महा-दुमु छिण्णु जेम वट्टइ णिच्चेयण-भाउ जाम एत्तहे वि कणउ कुरु-भवणे ताम वहु-विविहेहिं मंताराहणेहि सप्फुरेहिं महाहुइ-हुव्वणेहिं आराहिय किच्च महा-पसिद्ध सत्तमए दिवसे कह कह-व सिद्ध उद्धाइय हवि-जालाणुवण्ण दुछरिसण भीसण सुष्पसण्ण गय कणयहो पासे महा-रउद्द धवधवधवतयट्टणिय-सद दे दे आएसु महा-मुणिंद विणिवायमि किं वत्तीय इंद कि मेरु महागिरि णिद्दलेमि णवत्तेहि सह किं गइ मलेमि पायालु खणड़े खयहो गेमि भूगोलु स-सगडउ उत्थलेमि f; कुल-पव्वय सय-खंड गेमि किं वासुइ-कण-मणि अवहरेभि
धत्ता
तो वोल्लिज्जइ तावसेण रणे दुज्जय-वइरि-विमर्पण । जइ सच्चउ सु-पसण्ण महु तो मारहि पंडुहे गंदण ॥ १२
[१८] तं वयणु सुणेप्पिणु धगधगंति उद्धाइय रोसें पजलंति णं पलय-दिवायर-तेय-पिंडु दप्पें उद्धाइउ काल-दंडु तडतडयडति गय किच्च तेत्थु सहुं भाइहिं णिवडिउ राउ जेत्थु तो सरहो तीरे पंडव-दइच्च उत्थल्लेवि जोवइ जाम किच्च
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