SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ रिडणेमिचरिउ मई कुविए भीमे देव वि अदेव गय-घाएहिं पाडमि फलई जेव दणु-मणुय-महोग-व(घ)रिय सव्व अवर-वि जे तिहुवणे अतुल-गव्व ४ जं गज्जिउ णिभउ गयत्थ-पाणि उच्छलिय ताम णहे दिव्व वाणि मई मारिय मइ-मि समाणु जुज्झु जा आयहं सा जि अवत्थ तुझु जइ कह-मि महारउ लेहि णीरु जाणिज्जइ तो तब तणउ धीरु तं णिसुणेवि अतुल-परक्कमेण पइसेवि सर-मझे स-विक्कमेण ८ कर-कमल धुएवि तह जलु पिएवि अण्णु-वि थेरासणु पत्त लेवि धत्ता गरुय-गयासणि-गहिय-करु णिक्कलिउ स-मच्छरु जावहिं। विस-घाणिए घुम्मावियउ ओणल्लु महीयले तावहिं ॥ [१४] णिवडिउ तीरंतरे पवण-जाउ णं परम-महीहरे तडि-णिहाउ तो रायहो मणे उप्पण्ण चिंत जलु लेवि ण आवइ भीमु किं त णउ णावइ पत्थहो तणिय वत्त सहएव-णउल किं वणे समत्त परिचितेवि सुइरु णराहिवेण दिस-मग्गु णिहालिउ तव-सुएण कंदर-गिरि-सिहरि-लयाहराइं तरुवर-खयाल-विवरंतराइं उबवणे परिभमइ गरिंदु जाम णिग्गोह-महादुमु दिट्ठ ताम अण्णेत्तहे णिम्मिउ सरु विचित्तु कंजय-मयरंदामोय किंतु तहो तीरंतरे सज्जण-मणि? ओणल्ल चयारि-वि भाय दिट्ठ णं पडिय चयारि-वि तिस-गइंद णं वरुण-पवण-वइसवण-इंद हा जमल पत्थ पवि-सुय भणंतु अक्कंदइ हाहा-रउ करंतु घत्ता कलुणक्कंदु करंतएण सो जोएवि दुक्खें सल्लियउ । हाहाकारु करंतरण अवरेहि-मि धाहा मेल्लियउ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy