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सत्तावीसमो संधि
११५ को जाणइ दइयहो तणिय थत्ति विहि अविहि करेवए कासु सत्ति पइसरइ महासरे सव्वसाइ किंर सलिलु गरिंदहो लेवि जाइ ४ विस-पाणि धारिउ ताम पत्थु सर-तीरे पडिउ गंडीव-हत्थु वोल्लाविउ राएं अहो सु-धीम अज्जुणु वि चिरावइ काई भीम किं भायहं कहि-मि पमाउ जाउ जं परम-विसायहो गयउ राउ तं कुइउ विओयरु जिह कयंतु चलणेहिं महि-मंडलु णिद्दलंतु
पत्ता भिउडि-भयंकरु लउडि-करु थिर-थोर-महाभुय-पंजरु । गउ भंजंतु असेस-तरु आरण्णु णाई वण-कुंजरु ॥
[१२] किम्मीर-वीर-वल-मद्दणेण रण-कंहुहे पंडहे गंदणेण णिय-भायर परिवइटिय-सणेह दूरहो जि दिट्ट विद्दविय-देह णं तरु तीरंतरे तिण्णि छिण्ण ओवाइउ णं वसुमइहे दिण्ण जमलज्जुण-दुहेण विओयरो वि मुच्छा-विहलं-घलु पडिउ सो-वि सहसुट्टिउ चेयण-भाउ पत्त पुणु भणइ धणंजय जामि केत्त जो जोयमि सो-वि पलित्तु मग्गु वज्जमए खंभे धुणु केम लग्गु दोवइ-विवाह-खंडव-विणासे तल-तालुव-वम्म-बलेक्क-गासे वैदि-ग्गहे विग्गहे कहि-भि पत्थ ण कयावि हूय एही अवस्थ
घत्ता इंदु ण चूरिउ जमु ण जिउ कुरु-साइणु सरह(रेहिं) ण भेलिलउ । जलु थलु णहु ण कडंतरिउ गंडीउ पत्थ किह मेल्लिउ ॥ ९
[१३] सहं जमलेहिं णिव्वण्णंतु पत्थु ता रुण्णु भीमु जा तेण तित्थु पुणु दिण्णु समर-भर-धुरहे खंधु तं मारमि मारिय जेण बंधु
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